सोमवार, 6 अप्रैल 2020

वो कहाँ कब मेरी ओर झुका
मैं  लिखा समझ कर झुकी रही 

इतना अनजान कहाँ है तू 
यह मान के मैं तो छुपी रही 

जा कर ले जो तूने करना है 
इस जन्म का यहीं भरना है

तू दाता है जो मर्जी दे 
बस थोड़ी सी खुदगर्जी दे 

कुछ कागज़ मेरे फिर से लिख दे 
न फेर नज़र ये अर्जी ले 
 
कुछ तो  रहता  है थोडा ही सही 
आखिरी  बार मुझे मन मर्जी दे 

सुनीता धारीवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें