बहुत मजबूत डोर से बंधा
भाई मेरा
भोगौलिक दूरी पर
आज मुझे ताकता है
और पा लेता है
आती जाती ध्वनियों में
तरंगो में
और हम बात भी करते है
बिना कुछ कहे सुने
अति सूक्षम कुछ अहसास
हम करते है
बिना कलाई को छुए
और बिना किसी धागे
और मनाते है साल दर साल
यूँ ही खूबसूरत सा
बिना औपचारिकता
रक्षा बंधन
जानती हूँ वो प्राण है
मैं देह।। निसंदेह
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