रविवार, 28 मई 2017

मान क्यों नही जाते तुम

तुम मान क्यों नही जाते
तुम भी मुझको जीते हो

मेरा इंतज़ार करते हो
मुझ से बातें करते हो

क्यूँ  मेरा  मन पढ़ते हो
महसूस मुझे करते हो

मेरे लिए कभी जगते हो
कभी नींद झटक उठते हो

तुम मान क्यों नही लेते
आंखे तुम ने भी पढ़ी है ।

तुम ने दस्तक सुन ली है
ये द्वार तुम्ही ने खोला है

आसन भी तुम्ही ने दिया है
दिल ने महफ़िल चुन ली है

तुम मान क्यों नहों जाते
ये इकतरफा गली नही है

मानो तो पाप नहीं है
मानो तो सजा बड़ी है

इतने तंगदिल तुम न हो
जितना तुम कह देते हो

मानो न मानो सजना
तुम प्यार मुझे करते हो

मैंने टुकड़ो में मांगा था
तुम टुकड़ा ही देते हो

बेनाम शहर में घर मेरा है
मेरा पता तुम ही को पता है ।

मैं प्रेम कर बैठी तुमसे
मेरी बस यही खता है ।

तुम रोको न खुद को
नियति एक दिन रोकेगी ।

तब सब कुछ रुक जाएगा
तुम चाहोगे तब भी  न होगा

वक्त पर भी कुछ छोड़ो तुम
कुछ दिल की भी  मानो तुम

मत बहकाओ खुद को
बस मान जाओ तुम

दूर गगन के

तुम बादल किसी दूर गगन के
तुम से न बरसा जाएगा

मै तपती धरती मारू थल
तुम से न सींचा जाएगा

मैंने देखा तुम्हे  पुकार लिया
तुम से तो रुका न जाएगा

तुम झुके जरा जरा थोड़े थोड़े
पर तुम से बरसा न जाएगा

तुम रख लो अपना जल भीतर
आंखों से बह मुझ तक आएगा

चलो कोशिश करो न बरसोगे
एक दिन मुझको भी तरसोगे

मैं नहीं मिलूंगी उस सेहरा में
मैं मृग मारीचिका सी छल जाउंगी

तुम जल भर कर जब भी गुजरोगे
मैं पानी पानी हो जाउंगी

सुनीता धारीवाल

फरिश्ते

मन्नतों का कोई धागा
न बना है मेरे लिए
न कोई पेड़ बाकी है
न कोई टहनी ऐसी है
जहाँ बेनाम रिश्तो की
दुआएं मांगी जाती हों ।

न कोई पीर की चादर
बनी है वास्ते मेरे
न कोई मजार बाकी है
जहां सदका उतरता हो
बेनामी पाक रिश्तो का

न कोई मंदिर है मस्जिद है
न कोई  अजान न घंटी है
जो शोरोगुल में कह पाए
जो  कुछ बेनाम रिश्ते है
वो दुनिया के फरिश्ते हैं ।

न कोई  पंच न पंचायत ।
न  कोई थाना न कचहरी है
जहां दरख्वास्त भेजूं मैं
सजा खुद मांग लूँ अपनी
कि हर गलती भी मेरी है

न कोई दवा न दवाखाना
जहां  बेनामी दर्द और रिश्ते
रिसते हो और सिसकते हो
उन्हें कुछ बाम मिलता हो

न कोई है  मधु न मधुशाला
जहां कोई भूल पाता हो
नशा सर चढ़ कर बोला था
वो सर से उतरा जाता हो

न कोई मदरसा  न पाठशाला
जो रिश्तो के कायदे बताती हों
बे रिश्तों में रहूं कैसे जियूँ कैसे
मरना न मुझको जीना आया है

बता कोई तो जगह होगी
जहां पर वो फरियादी हो
जिनका रूहों से मिलना हो
जिनकी रूहानी शादी हो

सुनीता धारीवाल

शनिवार, 27 मई 2017

लहर

लहरों का मुक्कदर देखो
समंदर में ही  रह
किनारों से सर पटकती है
मैं जैसे लहर तुम में रहूं भी
और अपना सर पटकूं भी
किनारों से न अलग हो पाऊं ।

लहर को लहर रखता है
हवा का कहर रखता है
तू कितना गहरा समुन्द्र है
ज्वार में  फर्क रखता है

शुक्रवार, 26 मई 2017

कैसे मन  की परिभाषा में
तन की अभिलाषा दम तोड़ी

मैं इतनी भी खुदगर्ज नही
जा तेरी ही आशा छोड़ी

तन माटी और मन सोना सही 
माटी का मोल बस दो कौड़ी

तन रूहों का ही घर होता है
रब्ब ने ये जगह नही  छोड़ी

न गलत कोई न सही कोई
होता है वही जो होगा सही

क्यों तुमको मन समझाना है
क्यूँ सिद्धांतो को  सरकाना है

मैं कुछ दिन की ही हूँ तड़प बड़ी
मैंने खुद ब खुद आगे बढ़ जाना है 

क्यूँ नाहक चिंता तुम करते हो
चिंतन तो मेरा तराना है

मैं बाट  मुसाफिर थकी हुई
तुमको देखा तो प्यास लगी

सागर में रहती हूँ उथल पुथल
तुम मीठा झरना  मैं  बहक गई

तुम रहो मगन अपने तन मन में
क्यूँ मैंने तुमको भरमाना है

मैं कारावास आदि नहीं
मैंने तोड़ जंजीरें जाना है

चलते जाना ही जीवन है
रुकना तो बस मर जाना है

कुछ दिन की हूँ तड़प बड़ी

कैसे मन  की परिभाषा में
तन की अभिलाषा दम तोड़ी

मैं इतनी भी खुदगर्ज नही
जा तेरी ही आशा छोड़ी

तन माटी और मन सोना सही 
माटी का मोल बस दो कौड़ी

तन रूहों का ही घर होता है
रब्ब ने ये जगह नही  छोड़ी

न गलत कोई न सही कोई
होता है वही जो होगा सही

क्यों तुमको मन समझाना है
क्यूँ सिद्धांतो को  सरकाना है

मैं कुछ दिन की ही हूँ तड़प बड़ी
मैंने खुद ब खुद आगे बढ़ जाना है 

क्यूँ नाहक चिंता तुम करते हो
चिंतन तो मेरा तराना है

मैं बाट  मुसाफिर थकी हुई
तुमको देखा तो प्यास लगी

सागर में रहती हूँ उथल पुथल
तुम मीठा झरना  मैं  बहक गई

तुम रहो मगन अपने तन मन में
क्यूँ मैंने तुमको भरमाना है

मैं कारावास आदि नहीं
मैंने तोड़ जंजीरें जाना है

चलते जाना ही जीवन है
रुकना तो बस मर जाना है

मन्नतों का कोई धागा
न बना है मेरे लिए
न कोई पेड़ बाकी है
न कोई टहनी ऐसी है
जहाँ बेनाम रिश्तो की
दुआएं मांगी जाती हों ।

न कोई पीर की चादर
बनी है वास्ते मेरे
न कोई मजार बाकी है
जहां सदका उतरता हो
बेनामी पाक रिश्तो का

न कोई मंदिर है मस्जिद है
न कोई  अजान न घंटी है
जो शोरोगुल में कह पाए
जो  कुछ बेनाम रिश्ते है
वो दुनिया के फरिश्ते हैं ।

न कोई  पंच न पंचायत ।
न  कोई थाना न कचहरी है
जहां दरख्वास्त भेजूं मैं
सजा खुद मांग लूँ अपनी
कि हर गलती भी मेरी है

न कोई दवा न दवाखाना
जहां  बेनामी दर्द और रिश्ते
रिसते हो और सिसकते हो
उन्हें कुछ बाम मिलता हो

न कोई है  मधु न मधुशाला
जहां कोई भूल पाता हो
नशा सर चढ़ कर बोला था
वो सर से उतरा जाता हो

न कोई मदरसा  न पाठशाला
जो रिश्तो के कायदे बताती हों
बे रिश्तों में रहूं कैसे जियूँ कैसे
न किसी ने हुनर सिखाया है

बता कोई तो जगह होगी
जहां पर वो फरियादी हो
जिनका रूहों से मिलना हो
जिनकी रूहानी शादी हो

गुरुवार, 18 मई 2017

तुम्हे जिंदगी बना लूँ

तुम्हे नींद से जगा लूँ
तुमको गले लगा लूँ
देखो मुझे तुम जी भर
नजरें मैं अपनी झुका लूँ
मेरी सांस बन बहो तुम
तुम्हे धड़कन मेरी बना लूँ
मिल जाओ मुझ में इतना
जिंदगी मैं अपनी बना लूँ
मैं रहूं न बाकी जरा भी
खुद को मैं तुम पर मिटा लूँ
तुम गहन  प्रेम हो मेरे प्रिय
तुम्हे  प्रेम से ही  मैं पा लूँ
तुम ताप ही रहो तपे हो
खुद को मैं जरा तपा लूँ
करूँ नव जीवन निर्माण प्रिय
मेरी कोख में अंकुर सजा लूं
तुम सींचो मुझे भाव जल से
मैं बगिया तुम्हारी खिला दूँ
मैं जियूँ तुम्हे जी भर के
तुम्हे जिंदगी बना लूँ

सुनीता बॉवली

बुधवार, 17 मई 2017

महको तो सही

कुछ दिन ही सही ,महको तो कभी
साँसों में मेरी @
मदहोश किसी खुशबू की तरह

गुरुवार, 11 मई 2017

तुम दूर कहीं एक बादल

मैं सूखी बंजर धरती
तुम दूर कहीं एक बादल

मैं तुमको ताका करती हूँ
तेरे जल में झांका करती हूं

मैं आस करूँ बस तेरी
तुम प्यास मिटा दो  मेरी

भीगूं और गीली हो जाऊं
उर्वरा कण कण में हो जाऊं

मैं  जल बीज तुम्हारा चाहूँ
इस धरती पर ले आऊं

कोई तुमसा कारा कारा
नन्हा सा कोई दुलारा

मेरी गोद भरे बादल से
मैं खुद जल थल हो जाऊं

जब पास तुम्हारे आऊं
जग हरियाली कर आऊं

मन भी जोड़ लेते हैं

हम मन भी जोड़  लेते है
और तन भी जोड़ लेते है
जमाने तेरे असूल है
बस नाम न जोड़ा जाएगा
इसका उसका लिख लिख कर
इतिहास मरोड़ा जाएगा
मैं भी हूँगी और तुम भी होंगे
बस हम नही होंगे पन्नो में
तेरा प्यार बताऊंगी
तेरा नाम छुपाउंगी 

यही होगा .........

बुधवार, 10 मई 2017

तट बंध तुम्हारे

कंधो ने उठाया है जनाजा मेरा
दिल ने तो कोहराम किया था



तुम  समन्दर हो प्रिय

बहुत गहरे ,बहुत शांत
भीतर हजारों तूफान लिए
तुम मत बढ़ना कभी
मेरी ओर खुद को तूफान किये
प्रलय होगी
तुम से रुका नही जाएगा
फिर सब जल थल हो जाएगा

मैं नदी हूँ खुद ही आऊंगी
तुम में समाने
खुद को मिटाने
तेरे  खारे से जल में
मेरा मीठा जल मिलाऊंगी
तुझ सी खारी हो जाउंगी
नवजीवन पा जाऊंगी
जानते हो
कितना दुरूह सफर तय कर
जंगल झाड़ झंखाड़ रेगिस्तान
चट्टाने पत्थरो से रगड़ खाती
लहूलुहान तुम तक आ पहुंची हूँ
चोटिल भी हूँ और हारी हुई सी भी
तेरे तटबंध के पार खड़ी हूँ
तुम बस देख रहे हो
आतुरता मेरी और मौन हो
स्वभाव है तुम्हारा
कभी उफान पर ला लहरों को
तट बंध के बाहर भी
मुझे ताकते और झांकते हो
निकट दरवाजे पर हूँ तुम्हारे
हर दिन दस्तक भी देती हूं
तुम्हारे तट बंध
मुझ से बात नही करते
पर मेरा होना महसूस करते है
मैं भावना से  बह कर आई हूं  
रोज तुम तक
अपनी भावनाएं
संवेदनाएं लेकर 
तृप्त हूँ तुम तक पहुंच कर भी
काश तुम ये समझ पाते
तुझमे समां जाना
मुझे भाता है
मुझे भी बस यही
सिर्फ यही आता है
तुम अपने को समन्दर ही रखो
तुम मुझ पर कभी न झुको
मैं सदियों से बह रही हूँ
तुमसे सिर्फ तुमसे ही कह रही हूँ
काश तुम सुन पाते
मुझे आने दो
तुम में समाने दो
बूंद बूंद आलिंगन हो जाउंगी
देखना मैं नदी कहाँ रहूँगी
समुन्द्र हो जाउंगी
एक बार तट बंधो से कहो
मुझे गले लगा लें
कोई रास्ता बना लें

सुनीता धारीवाल

मंगलवार, 9 मई 2017

कारावास में मुझे

मैं चाहती भी नहीं 
ये तिल्लिसम कोई तोड़ दे 
कि मैं तुम्हारी हूँ 
इसका कोई भ्र्म तोड़ दे 
नीरस ही है और था
यह जीवन तेरे बिना 
कोई पा जाऊं उपाय मैं 
जो तुम्हे मुझ से जोड़ दे 
अपना ले बस वो मुझे 
तमाम दुनिया मुझे छोड़ दे 
इश्क़ ज्यादा है किसका 
आगे निकलने की होड़ दे 
सिर्फ एक बार ही हो जाये 
वो बस मेरा यकीनन 
फिर चाहे दिल मेरा  तोड़ दे 
वो एक बार कुछ तो कहे मुझ से 
हे राम तू उसकी चुप्पी तोड़ दे 
जुर्म भी है किया मैंने ही गुनाह मेरा है 
मेरे कारावास मे उसे कैदी छोड़ दे

रविवार, 7 मई 2017

यूँ ही अपने अपने सफर में गुम

यूँ ही अपने अपने सफर में गुम ।
न मिलूंगी मैं न मिलोगे तुम

यूँ ही मिल गए थे किसी मोड़ पे
चल दिये थे दुनिया को छोड़ के

एक दिन तो जाना है अपनी डगर
फिर कैसा सफर कैसी अगर मगर

मैं राहों में पलके बिछा तो दूँ
गर चले वो मेरी भी  कुछ डगर

ये तो जानती हूं मैं भी बॉवली
न वो मेरा न मैं उसकी हमसफ़र।

सुनीता