तहे जोड़ी है उम्र भर भावनाओ के लिबासो की
करीने से रखा था मन की अलमारी में
आज एक तह क्या खिसकाई
कि हर तह फिसल आ गिरी आभासों की
खुल गई तहे सब ढेर लग गया कदमो में
इतना झुकि उठाने को कि उठ नहीं पाई
कुछ तहे बोली कुछ कह भी न पाई
कुछ ने आँख मिलाई कुछ ने आँख चुराई
कुछ तह मुस्काई कुछ थी एकदम पथराई
कुछ तहें आज भी मेरी समझ नहीं आई
कुछ सलवटे कभी नहीं निकली
तहों बीचउनकी मुंह चिढाती किकली
हर बार तहे बदलती हूँ कि संभली रहे
निशान न पड़ें ,कीड़े न लगे , उमस में न गले
आज सुबह सुबह सब लिबास रख दिए बाहर
कि अब नहीं तहे लगाउगी न सलवटे गिनुंगी
खाली कर दूंगी सब अलमारिया मन की
कुछ नया सिलवाऊँगी पहनूंगी भूल जाउंगी
दिल से नहीं लगाऊँगी कभी न तहे जमाऊँगी
सुनीता धारीवाल जांगिड
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