गुरुवार, 6 जनवरी 2022

सियासत ने क्या सिखाया मुझे

सियासत ने मुझे बहुत कुछ सिखाया या यूं कहें कि मैंने इस क्षेत्र की सक्रियता को बहुत नजदीक से जाना और स्वयं का विकास किया ।मैंने सीखा कि आप के शब्दों की कीमत क्या है कब कैसे किसको कहाँ क्या और कितना कहना है कितना कहा जाए यह सीखा ।अपने शब्दों पर नियंत्रण और शब्दों का चयन सीखा ।सहन शक्ति की पराकाष्ठा सीखी ।सम्मान ग्रहण करना और उसके मायने सीखे ।सामाजिक जिम्मेदारी क्या है कैसे निभाई जाए कैसे समझी जाए कैसे कोशिश की जाए यह समझा ,अपने वजूद की पहचान हुई ।अपनी क्षमताओं का आंकलन हुआ ,खुद पर नियंत्रण साधना सीखा
।चुप रहना और चुप के अर्थ समझने आ गए । विरोध और आलोचना को सहन करना सीखा ।स्वयं से लड़ाई लड़ना सीखा ।विचारों की भिन्नता को स्वीकारना सीखा ।अफवाह और दुष्प्रचारो को सहन करना उनसे पार पाना सीखा ।अंततः समझा  की अनकूल और विपरीत परिस्थितियां और उस समय मे मिले या चूक गए अवसर सब किस्मत का खेल है ।हम स्वयं का बौद्धिक और सामाजिक रूप से  विकसित कर सकते है पर राजनैतिक  सामर्थ्य का हासिल होना या न होना सब भाग्य है ।परोक्ष रूप से बहुत कुछ हासिल होता है जब हम मेहनत करते है ।कम से कम अनुभव तो हासिल होता है 
।सियासत में  व्यवहारिकता है भावना की प्रधानता नही है भावुक होना कमजोरी है सहज विश्वास करना मूर्खता है ।
आखों से देख कर कानो से सुन कर भी अंधे होना और बहरे होना क्या होता है यह भी अनुभव किया ।
मेरा सारा व्यक्तित्व बदल गया ।चंचलता तो soul से निकल गई ।अनुराग विचलित हो गया ।रह गई बस हर वक्त चिंतन और जिम्मेदारी का दबाव। देश प्रथम हो गया समाज प्रथम हो गया ।परिवार और स्वयं को झोंकना देश के प्रति जिम्मेदारी लगा ।बहुत कुछ छूट गया । जो खो गया वह पाया नही जा सकता है क्या मिलेगा उस तरफ कभी ध्यान एकाग्र नही किया । मंजिल थी नही तो रास्ते भी सरल नही रहे ।और अब तो वक्त निकल गया । आदत हो गई है हर दम चिंतन के दबाव में रहने की । अब तो किसी के लायक नही रहे । कहीं भी फिट नही । क्षणिक आनन्द की घड़ियां खोजते  चुनते चुनते बिताते बिताते बीत रही है । लगता है जैसे personalty disorder है कोई ।जैसे हम  है वैसा माहौल जगह और अवसर नही ।जैसा माहौल और जिम्मेदारिया है वैसे हम नही ।सामंजस्य बैठ नही रहा न ही कभी बैठेगा ।

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