क्या जितना भद्दा औरतो के लिए बोला जाता है उतना लिखा भी जा सकता है मेरे लिए यह प्रश्न है जब कहने वाले को शर्म नहीं आती तो और वो सुन रही होती है तो हमें लिखने में क्यूँ आये -एक बार मैंने यूँ का यूँ लिख दिया इतनी आलोचना हुई की मैं सस्ती लोकप्रियता और बिकने वाला माल लिखना चाहती हूँ - पर जब मेरी आँखों के आगे उस जबरन कपडे उतरे महिला की और गया और उस पर बरसती गालियाँ की और मर्दानगी के लात घूसों की और गया तो मुझे लगा की मैंने जो भी सुना था उस से तो कम ही लिखा था पर पर मुझ पर जो सभ्य लोगो के सभ्य शब्दों की बरसात हुई की मैं महफ़िल में ही गैर जरुरी सी यानि तिरस्कृत सी हो गई -यहाँ तक की महिलाएं मुझे नसीहत देने लगी की पुरुषो की शब्द् भाषा हमें नहीं उन्हें याद करवानी चाहिए -
हर प्रकार कीअसफलता का ठीकरा फोड़ने या गुस्सा उतरने के लिए औरत है है जिसे उसकी सम्पति समझा कर दिया जाताहै
हर किसी औरत के यदि अन्तरंग यातनाओं पर लिखना चाहू तो एक नावेल बन जाये-क्यूंकी वाही एक वक्त होता है जब कोई और उसकी यातनाओं का गवाह नहीं होता -न सारी उसे पानी में खड़ा रखना हो या टाँगे खूंटी से बाँध कर मनचाहा करना हो जैसे कई किस्से हर दूसरी औरत के पास होंगे -हाँ उस पर थूकने के भी
कभी समय मिले तो फाइटर की डायरी किताब पढना पुष्पा मैत्रयी जी की कुछउधाहरण तो उसी में भी मिल जायेंगे-
जमाना कितना भी बदल जाये कितना भी उन्नति हो औरतो का पीटना लूटना तबतक चलेगा जब तक वह खुद उस नरक से छुट कर भागें नहीं
जहाँ प्रेम व् सम्मान है और दिमागों की समतल भूमि है वहां इस से खूबसूरत कोई रिश्ता नहीं -पता नहीं क्या होता है पुरुष में की हम औरते सबसे ज्यादा खुश भी उन्ही के साथ रहती है
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