मुझे लगता है हम जीवन मे जितने कम लोगो से मिलें वह ठीक है या चाहे ज्यादा लोगों से भी मिलें पर अनासक्ति से मिले यही ठीक है । हमारे इर्द गिर्द सब आत्माएं व शरीर अपने अपने प्रारब्ध से और इस जन्म के अपने अपने कर्मो से फलित ऊर्जाओं से लदे हुए हैं अपने आसपास ज्यादा आत्मिक ऊर्जाएं हमारे शरीर मे बेचैनियां बढाती है हम उनकी नेगेटिव पॉजिटिव सब ऊर्जाओं को खुद में प्रवाहित होने देते है सम्वाद के माध्यम से , स्पर्श के माध्यम से ,नजरों के माध्यम से हम उनकी ऊर्जा को स्वयं में प्रवेश दिलवा देते हैं जो हमारे शरीर में भी उथल पुथल पैदा करती है । हमारे स्वयं की क्रिएट की गई ऊर्जा में अचानक नई ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है ।हम उक्त ऊर्जा की हम को शायद जरूरत नही होती इसलिए वे हम में बेचैनी पैदा करते है ।भय भ्रम असुरक्षा सब चला आता है ।क्या पता उस शरीर मे किस तरह की ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी जो हम ने ले ली ।
हां अगर हम योगी है और निरंतर अध्यात्म में मेडिटेशन से अपनी स्वयं की ऊर्जा को इतना प्रबल कर लेते हैं कि उस के तेज से सब नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होंने लगे तब तो हमें खुल कर अधिक से अधिक ऊर्जाओं के संपर्क में आना हो जाये तो कोई बात नही ।यदि हम स्वयं अपनी ही ऊर्जा से परिचित नही है सहज नही है बेचैन है अपने कर्म गति से उतपन्न ऊर्जाओं से ही सामंजस्य नही बैठा पा रहे हैं तो हमें स्वयं अपने भीतर ही उतरने की खुद पर ही काम करने की जरूरत है।योगियों के एकांत वास में जाना । प्राकृतिक ऊर्जा में साधना करना इसलिए जरूरी था कि वे अपनी ऊर्जा को समझ सके व उस को बैलेंस कर सकें ।यही बात हम पर भी लागू होती है कि हम चेतन हो कर अपने भीतर सूक्ष्म को महसूस कर सकें
हमारे भीतर की निराशा अवसाद बेचैनियां असुरक्षाये आखिर हमारे कर्म फल की ऊर्जाएं है जो सदैव हमारे साथ चिपकी हुई है क्योंकि हमारे शरीर की जेनेटिक मेमोरी उन को डिलीट नही होने दे रही ।और वो कभी डिलीट होगीं भी नही ।( डीएनए सैंकड़ो वर्ष की पीढ़ी दर पीढ़ी स्मृति रखता है ।यह भी सम्भव है हमारी इस चेन में ही अपने दादा पड़दादा की बात चीत तक की स्टोरेज मिल जाए ।)
घबराहट ,बेचैनियों, निराशा ,अवसाद की अनुभूतियां कर्म के फल का सूक्ष्म प्रसाद है इसलिए हमें कर्म करते समय जागना है कि हम यह क्यों कर रहे हैं इसका फल क्या होगा ।क्यों हम किसी से मिल रहे हैं क्यों हम यह काम कर रहे हैं । क्यों हम यह रिश्ता बना रहे है क्यों हम किसी से बात कर रहे हैं ।यदि हम यह सब जागते हुए करेंगे तो कर्म अपनी सीमाएं खींच कर आपको अपनी हद दिखा देगा ।अगर हम बस यूँ ही कर्म करेंगे ।किसी की देखा देखी करेंगे या फिर मोह या काम के वशीभूत हो कर करेंगे या फिर चित्त की किसी भी प्रवृति काम क्रोध लोभ मोह अंहकार के अधीन हो कर करेंगे तो कर्म फल बेचैनी पैदा करेगा ।और यदि हम सजग हो कर करेंगे तो कर्म फल शांति और तृप्ति देने वाला होगा।अब सवाल यह है कि आज जितनी समझ है यह समझ न तो तीस वर्ष पहले थी न चालीस वर्ष इतनी आध्यात्मिक उन्नति तब नही थी कि हम कर्म को जागृत अवस्था मे कर पाते ।अब जो पूर्व में किया गया कर्म फल संग्रहण हो गया है वह तो जाएगा नही ।बल्कि कॉन्शियसनेस ऊपरी परत पर बार बार चल कर आएगा ।तो अब कर्म फल की ऊर्जाओं को कैसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उसके लिए बहुत आध्यात्मिक अभ्यास की जरूरत है ।
जीवन में जाने अनजाने में बहुत से काम हम गलत करते है क्योंकि चैतन्य नही था । जैसे किसी गलत आदमी की मदद कर के पछताते है ।दिमाग ने एक दिन बताया कि गलत हो गया मुझ से तो नेगेटिव ऊर्जा का एक फोल्डर में एक स्टोरी शामिल हो गई ।गलत लोगों से मदद ले ली ।गलत लोगो को अपने जीवन मे शामिल कर लिया मित्र बना लिया प्रेम कर लिया यह सब के रिजल्ट अनुभव बाद में पता चलते हैं जब हो चुके हैं ।कर्म फल का फोल्डर दिमाग और शरीर मे सेव होता जाता है ।यही सताता है सब को ही ।हमारा स्वास्थ्य भी हमारे कर्म फल का ही आईना है ।पर समझ देर से आती है ।या तो कोई समझाने वाला नही होता यदि होता भी है तब वो हमारे समझ जाने के तरीके से हमें समझा नही पाता ।
और हम दुनिया के रंगों के दास हो जाते हैं भीतरी दुनिया से पूरी तरह अनभिज्ञ ।
सुनीता धारीवाल
9888741311
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