हमारे जीवन में हमने धन, बल ,प्रतिष्ठा से अधिक महत्त्व रिश्तों को दिया -जानते हुए की सामने वाला हमें धोखा दे रहा है कई बार उसका भी मन रखने केलिए उसकी बात मान ली सोच लिया की एक दिन जब उसका विवेक जागेगा तो उसे अपनी गलती का एहसास हो जायेगा अभी उसे ही खुश हो लेने दो
किसी को बुरा न लग जाये इसख्याल से खुद को जो भी बुरा लगा उसे पी गए,कभी अपनी व्यक्तिगत ज़रूरत को सर्वोपरि नहीं माना , रिश्ते, भाईचारे, मित्र बचाने को अपने हक़ छोड़ते चले गए -
जीवन भर इंसान ही कमाए और कुछ नहीं और सिर्फ ये वाकय कमाया की" ये परिवार बहुत अच्छा है -"अब बच्चे भी वैसे ही होते जा रहें हैं-संवेदनशील और रिश्ते कमाने वाले -कभी कभी मैं चाहती भी हूँ कि वह समय के मुताबिक व्यवहारिक हो जाएँ और अपना अपना सोचे स्वयं पर ही केन्द्रित नहीं पर वह ऐसा नहीं कर पा रहें हैं क्युकी उन्होंने सीखा ही नहीं -न कभी खुद की मार्केटिंग की न ही खुद के लिए भौतिक सफलता ही जुटा पाएंगे वे भी कभी हमारी तरह
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