सोमवार, 9 नवंबर 2020

बच्चियां जो कभी बच्चियां और किशोरी नहीं होती -
हमारे शहरों में हमारी ही नाक के नीचे कितने ही बाल विवाह हो जाते है कितनी ही किशोरवय बच्चियां माँ भी बन जाती है और हमारा ध्यान इस ओर जाता ही नहीं - हमारे मोहल्ले की धोबन कमला की बेटी मौलीनि जैसी कई बार अभागी 18 वर्ष में तीन बच्चो की विधवा माँ भी हो जाती हैं -कभी हमने इनके घरों में झाँकने की भी कोशिश नहीं करते -इनकी बच्चियां माँ के साथ साथ घरों में काम करते करते बड़ी हो जाती हैं और आठ साल की आयु में घरों में काम करने लगती है 99 प्रतिशत यौन उत्पीडन का शिकार होती है -(वक्त से पहले जवान हो जाती है -शारीरिक नहीं मानसिक रूप से )बड़ो की तरह व्यवहार करने लगती हैं -13-14 साल की लड़की खुद अपने लिए वर मांग लेती है नहीं तो किसी के भी संग भाग जाने की धमकी भी देती हैं -ये वो बच्चिय है जो बचपन से सीधे जवानी और अधेड़ अवस्था में प्रवेश करती हैं -किशोरवय जैसी कोई उहापोह की स्थिती तो आती ही नहीं
हमारे जीवन में हमने धन, बल ,प्रतिष्ठा से अधिक महत्त्व रिश्तों को दिया -जानते हुए की सामने वाला हमें धोखा दे रहा है कई बार उसका भी मन रखने केलिए उसकी बात मान ली सोच लिया की एक दिन जब उसका विवेक जागेगा तो उसे अपनी गलती का एहसास हो जायेगा अभी उसे ही खुश हो लेने दो
किसी को बुरा न लग जाये इसख्याल से खुद को जो भी बुरा लगा उसे पी गए,कभी अपनी व्यक्तिगत ज़रूरत को सर्वोपरि नहीं माना , रिश्ते, भाईचारे, मित्र बचाने को अपने हक़ छोड़ते चले गए -
जीवन भर इंसान ही कमाए और कुछ नहीं और सिर्फ ये वाकय कमाया की" ये परिवार बहुत अच्छा है -"अब बच्चे भी वैसे ही होते जा रहें हैं-संवेदनशील और रिश्ते कमाने वाले -कभी कभी मैं चाहती भी हूँ कि वह समय के मुताबिक व्यवहारिक हो जाएँ और अपना अपना सोचे स्वयं पर ही केन्द्रित नहीं पर वह ऐसा नहीं कर पा रहें हैं क्युकी उन्होंने सीखा ही नहीं -न कभी खुद की मार्केटिंग की न ही खुद के लिए भौतिक सफलता ही जुटा पाएंगे वे भी कभी हमारी तरह
हाँ बस शांत औरस्थिर जीवन तो रहेगा और घर में ही छोटी छोटी खुशियाँ ढून्ढ कर खुश भी रहेंगे मेरे बच्चे

व्यवहार

दस बीस वर्ष पहले जो व्यक्ति आपका जूनियर हो या आपसे कम क्षमता रखता हो या आप का मातहत हो और वही आपको अरसे बाद मिले तो यह ज़रूरी नहीं कि आज भी उसकी या आपकी स्तिथि या परिस्तिथि पहले वाली होगी और आप उसे उसी तरह व्यवहार करे जैसे बरसो पहले करते होंगे तो आप निश्चित ही वह नया बन सकने लायक सम्बन्ध खो देगें ।यदि तब भी आप उन्हें प्यार से व्यवहार करते थे और आज भी उतना ही करें तो समझ आता है लेकिन यदि आप उसका पुराने समय में उपहास करते आ रहें हो और आज भी वैसा ही करें बिना उसकी आज की सामाजिक स्थिति जाने तो हानि आप की ही होगी और एक सम्बन्ध बनते बनते बिगड़ जायेगा
अगर आप ने इतने अरसे में तरक्की कर ली है तो स्वाभाविक है उसने भी की होगी आप किसी को भी अपने पुराने चश्मे से देखेंगे तो गलती करेंगे ।पूर्वधारणा बनाना व उसके अनुसार आचरण करना अपरिपक्वता प्रदर्शित होती है

हम आत्म मुग्ध हैं और दुसरो को को दिखाना चाहते हैं कि हम आत्म मुग्ध है

वैसे हम अपनी फोटो क्यों शेयर करते हैं अभी अभी दिमाग मे प्रश्न कौंधा ।ऐसे ही टाइम पास कर रहे है - कि कुछ भी पोस्ट दे मारा बिना सोचे समझे ।या कि हम आत्म मुग्ध हैं और दुसरो को को दिखाना चाहते हैं कि हम आत्म मुग्ध है ।हम प्रसंशा पाना चाहते हैं पर क्यों ।बिना उद्देश्य तय किये हम क्यों अभिव्यक्त करते रहते है यह गलत बात है ।हमें पहले यह तय करना चाहिए कि हम क्यों ऐसा करना चाहते हैं फिर कोई सम्वाद करना चहिए ।खुद से भी और अन्य से और समाज से ।आज फोटो पोस्ट करने के बाद यह ख्याल आया एकाएक तो स्वयं पर शर्मिन्दगी सी हुई ।
हम क्यों इतने उत्साहित होते हैं स्वयं को दिखाने के लिए
यह भावना क्यों हैं ।कई बार कोई उद्देश्य नही होता फिर भी पोस्ट करते रहते हैं तसवीरें जिन से किसी अन्य को कुछ लेना देना नही होता ।
अपनी चेतना को जागृत रख कर ही सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए यह मेरा मुझ को ही परामर्श है ।आपको कुछ नही कहा है ।स्वयं को ही चेताया है कि सिर्फ काम की ही बात करो जिस से किसी अन्य का फायदा होता हो किसी को वैचारिक या आर्थिक लाभ हो वही बात की जाए ।या खुद की कोई कृति या रचना या काम बताना हो । बेवजह स्वयं की कोई भी तस्वीर शेयर करना गलत बात एकदम गलत बात समझी सुनीता रानी ☺️आज से खुद की कोई भी फ़ोटो शेयर करना बंद ।सिर्फ काम की बात ,काम की ही पोस्ट ,या फिर ज्ञान झाड़ने की भड़ास या लेखन की भड़ास बस

बना बनाया मंच नही देगा

अनुभव
बना बनाया मंच नही देगा कोई स्वयं लकड़ी इक्कठी करो। कील लगाओ जोड़ो काँधे पर उठाओ ।लोगो को जोड़ो ।मदद लो न मिले तो भी अकेले लगे रहो । फिर बार बार खुद की सहनशीलता टेस्ट करो ।मंच गिरेगा तो नही । गिराने वालों से भी बचाओ ।आलोचना करने वालों से भी दो चार गाली सुनो । सालों साल मंच को कंधे पर उठा कर रखो ।फिर जब आप स्वयं इतने सक्षम हो जाएंगे कि किसी अन्य के मंच की आपको जरूरत ही न पड़े तभी सारे मंच आपके लिए खुल जाएंगे ।तुम मुझे मंच दो मैं तुम्हे अपना मंच दूंगा ।
कोई भी आपको मंच या अवसर इसलिए नही देता कि आपको उस अवसर की उस मंच की बहुत जरूरत है इसलिए देंगे कि अब आप उनके भी बहुत काम आ सकते हो ।आपकी उपयोगिता आपके सम्मान की मात्रा निर्धारित करती है ।समाज का सच यही है ।संतोष यह रहेगा जीवन भर कि हम ने जुनून रखा तो बहुत से साधनहीन प्रतिभाशाली लोगो को मंच दिया अवसर दिए ।जितने में मेरे सामर्थ्य में उतने ही कर पाई ।आजकल सोशल मीडिया में जो भी आप करते हैं तब दिख जाता है ।जब हम काम कर रहे थे दीन दुनिया भूल कर तब सिर्फ अखबार होते थे उनकी खबर भी स्थानीय पन्ने तक रह जाती थी ।और दूसरे जिले तक मे ज्यादा खबर नही होती थी ।कभी कभी कोई राज्य के पेज पर खबर छपती थी तो सब को पता चलता था कि कुछ कार्यक्रम हुआ ।अब तो सम्वाद व प्रचार की बहुत आसानी है । लिखने की भी स्वतंत्रता है स्वयं की भी

करवा चौथ

करवा चौथ पर्व श्रद्धा और विश्वास से कोई कर रहा है तो उत्तम है यदि संशय है और फिर भी मजबूरी या दबाव में या मात्र प्रदर्शन के लिए कर रहा है या फिर भीड़ जो कर रही है वह मुझे भी करना चाहिए यह सोच कर आप व्रत रख रहें तो इस से अच्छा न रखें ।व्रत के दिन पति पर उपहार का दवाब भी गलत है कि सब दे रहें हैं तुम कुछ नही दे रहे यह भी गलत है ।हर त्योहार के पीछे एक बाजार होता है जो किसी वर्ग को लाभ देता है और वह वर्ग उस त्योहार को बनाए रखने में पूरी ताकत लगा देता है ।कब श्रद्धा के नाम पर आप बाजार के क्रूर हाथो में खेलने लगते हो पता नही चलता

क्या जितना भद्दा औरतो के लिए बोला जाता है उतना लिखा भी जा सकता है

क्या जितना भद्दा औरतो के लिए बोला जाता है उतना लिखा भी जा सकता है मेरे लिए यह प्रश्न है जब कहने वाले को शर्म नहीं आती तो और वो सुन रही होती है तो हमें लिखने में क्यूँ आये -एक बार मैंने यूँ का यूँ लिख दिया इतनी आलोचना हुई की मैं सस्ती लोकप्रियता और बिकने वाला माल लिखना चाहती हूँ - पर जब मेरी आँखों के आगे उस जबरन कपडे उतरे महिला की और गया और उस पर बरसती गालियाँ की और मर्दानगी के लात घूसों की और गया तो मुझे लगा की मैंने जो भी सुना था उस से तो कम ही लिखा था पर पर मुझ पर जो सभ्य लोगो के सभ्य शब्दों की बरसात हुई की मैं महफ़िल में ही गैर जरुरी सी यानि तिरस्कृत सी हो गई -यहाँ तक की महिलाएं मुझे नसीहत देने लगी की पुरुषो की शब्द् भाषा हमें नहीं उन्हें याद करवानी चाहिए -
हर प्रकार कीअसफलता का ठीकरा फोड़ने या गुस्सा उतरने के लिए औरत है है जिसे उसकी सम्पति समझा कर दिया जाताहै
हर किसी औरत के यदि अन्तरंग यातनाओं पर लिखना चाहू तो एक नावेल बन जाये-क्यूंकी वाही एक वक्त होता है जब कोई और उसकी यातनाओं का गवाह नहीं होता -न सारी उसे पानी में खड़ा रखना हो या टाँगे खूंटी से बाँध कर मनचाहा करना हो जैसे कई किस्से हर दूसरी औरत के पास होंगे -हाँ उस पर थूकने के भी
कभी समय मिले तो फाइटर की डायरी किताब पढना पुष्पा मैत्रयी जी की कुछउधाहरण तो उसी में भी मिल जायेंगे-
जमाना कितना भी बदल जाये कितना भी उन्नति हो औरतो का पीटना लूटना तबतक चलेगा जब तक वह खुद उस नरक से छुट कर भागें नहीं
जहाँ प्रेम व् सम्मान है और दिमागों की समतल भूमि है वहां इस से खूबसूरत कोई रिश्ता नहीं -पता नहीं क्या होता है पुरुष में की हम औरते सबसे ज्यादा खुश भी उन्ही के साथ रहती है

#PINKROOF CAMPAIGN


एक गुलाबी सी छत का सपना लो बेटियो .....सपनो के राजकुमार के सपने से पहले ..तुम्हारा अपना घर ...सिर्फ तुम्हारा ..जहां से कोई तुम्हे न निकाल सके कभी भी
#pinkroof campagin
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कम लोगो से मिलें

मुझे लगता है हम जीवन मे जितने कम लोगो से मिलें वह ठीक है या चाहे ज्यादा लोगों से भी मिलें पर अनासक्ति से मिले यही ठीक है । हमारे इर्द गिर्द सब आत्माएं व शरीर अपने अपने प्रारब्ध से और इस जन्म के अपने अपने कर्मो से फलित ऊर्जाओं से लदे हुए हैं अपने आसपास ज्यादा आत्मिक ऊर्जाएं हमारे शरीर मे बेचैनियां बढाती है हम उनकी नेगेटिव पॉजिटिव सब ऊर्जाओं को खुद में प्रवाहित होने देते है सम्वाद के माध्यम से , स्पर्श के माध्यम से ,नजरों के माध्यम से हम उनकी ऊर्जा को स्वयं में प्रवेश दिलवा देते हैं जो हमारे शरीर में भी उथल पुथल पैदा करती है । हमारे स्वयं की क्रिएट की गई ऊर्जा में अचानक नई ऊर्जा का प्रवेश हो जाता है ।हम उक्त ऊर्जा की हम को शायद जरूरत नही होती इसलिए वे हम में बेचैनी पैदा करते है ।भय भ्रम असुरक्षा सब चला आता है ।क्या पता उस शरीर मे किस तरह की ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी जो हम ने ले ली ।
हां अगर हम योगी है और निरंतर अध्यात्म में मेडिटेशन से अपनी स्वयं की ऊर्जा को इतना प्रबल कर लेते हैं कि उस के तेज से सब नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होंने लगे तब तो हमें खुल कर अधिक से अधिक ऊर्जाओं के संपर्क में आना हो जाये तो कोई बात नही ।यदि हम स्वयं अपनी ही ऊर्जा से परिचित नही है सहज नही है बेचैन है अपने कर्म गति से उतपन्न ऊर्जाओं से ही सामंजस्य नही बैठा पा रहे हैं तो हमें स्वयं अपने भीतर ही उतरने की खुद पर ही काम करने की जरूरत है।योगियों के एकांत वास में जाना । प्राकृतिक ऊर्जा में साधना करना इसलिए जरूरी था कि वे अपनी ऊर्जा को समझ सके व उस को बैलेंस कर सकें ।यही बात हम पर भी लागू होती है कि हम चेतन हो कर अपने भीतर सूक्ष्म को महसूस कर सकें
हमारे भीतर की निराशा अवसाद बेचैनियां असुरक्षाये आखिर हमारे कर्म फल की ऊर्जाएं है जो सदैव हमारे साथ चिपकी हुई है क्योंकि हमारे शरीर की जेनेटिक मेमोरी उन को डिलीट नही होने दे रही ।और वो कभी डिलीट होगीं भी नही ।( डीएनए सैंकड़ो वर्ष की पीढ़ी दर पीढ़ी स्मृति रखता है ।यह भी सम्भव है हमारी इस चेन में ही अपने दादा पड़दादा की बात चीत तक की स्टोरेज मिल जाए ।)
घबराहट ,बेचैनियों, निराशा ,अवसाद की अनुभूतियां कर्म के फल का सूक्ष्म प्रसाद है इसलिए हमें कर्म करते समय जागना है कि हम यह क्यों कर रहे हैं इसका फल क्या होगा ।क्यों हम किसी से मिल रहे हैं क्यों हम यह काम कर रहे हैं । क्यों हम यह रिश्ता बना रहे है क्यों हम किसी से बात कर रहे हैं ।यदि हम यह सब जागते हुए करेंगे तो कर्म अपनी सीमाएं खींच कर आपको अपनी हद दिखा देगा ।अगर हम बस यूँ ही कर्म करेंगे ।किसी की देखा देखी करेंगे या फिर मोह या काम के वशीभूत हो कर करेंगे या फिर चित्त की किसी भी प्रवृति काम क्रोध लोभ मोह अंहकार के अधीन हो कर करेंगे तो कर्म फल बेचैनी पैदा करेगा ।और यदि हम सजग हो कर करेंगे तो कर्म फल शांति और तृप्ति देने वाला होगा।अब सवाल यह है कि आज जितनी समझ है यह समझ न तो तीस वर्ष पहले थी न चालीस वर्ष इतनी आध्यात्मिक उन्नति तब नही थी कि हम कर्म को जागृत अवस्था मे कर पाते ।अब जो पूर्व में किया गया कर्म फल संग्रहण हो गया है वह तो जाएगा नही ।बल्कि कॉन्शियसनेस ऊपरी परत पर बार बार चल कर आएगा ।तो अब कर्म फल की ऊर्जाओं को कैसे अपने ऊपर हावी होने से बचा जाए उसके लिए बहुत आध्यात्मिक अभ्यास की जरूरत है ।
जीवन में जाने अनजाने में बहुत से काम हम गलत करते है क्योंकि चैतन्य नही था । जैसे किसी गलत आदमी की मदद कर के पछताते है ।दिमाग ने एक दिन बताया कि गलत हो गया मुझ से तो नेगेटिव ऊर्जा का एक फोल्डर में एक स्टोरी शामिल हो गई ।गलत लोगों से मदद ले ली ।गलत लोगो को अपने जीवन मे शामिल कर लिया मित्र बना लिया प्रेम कर लिया यह सब के रिजल्ट अनुभव बाद में पता चलते हैं जब हो चुके हैं ।कर्म फल का फोल्डर दिमाग और शरीर मे सेव होता जाता है ।यही सताता है सब को ही ।हमारा स्वास्थ्य भी हमारे कर्म फल का ही आईना है ।पर समझ देर से आती है ।या तो कोई समझाने वाला नही होता यदि होता भी है तब वो हमारे समझ जाने के तरीके से हमें समझा नही पाता ।
और हम दुनिया के रंगों के दास हो जाते हैं भीतरी दुनिया से पूरी तरह अनभिज्ञ ।
सुनीता धारीवाल
9888741311