जान से मार देंगे ..काट कर टुकड़े टुकड़े कर जमीन में गाड़ देंगे किसी को पता भी नही चलेगा इस दुनिया मे तुम थी भी या नही । गिनती कर ले चाचे ताऊ कितने है कितना बड़ा कुनबा है जरा सी ऊंच नीच की तो कोई लिहाज नही किया जाएगा ।मुझे लगता है जैसे मुझे कही गई यह बात हर उस लड़की से कही गई जो किशोर आयु में कदम रख रही होगी । वह जो अभी ढंग से जान भी नही पाई है क्या समाज है इस समाज मे वह कौन है वह तो सिर्फ शारीरिक मानसिक बदलावों के प्रति जिज्ञासु है खुद पर मुग्ध हो रही है या कभी चिंतित सी अपनी दुनिया मे खोई है मां की रखी सिंगार दानी पर नजर है शीशे पर नजर है काजल बिंदी रंग बिरगे कपड़े उसे आकर्षित करते हैं और कभी कभी हैरान हो कर किसी किशोर को देखती है तो उसकी नजर से सकपका जाती है ।इसे बड़ी आयु की लंपटता भरी निगाहे तीर की तरह चुभती है पर उसे पता नही चलता उस के शरीर मे ऐसा क्या है जिसे घूरा जा रहा है वह विचलित है मिले जुले अच्छे और असहज करने वाले अनुभव हो रहे होते हैं और इसी बीच माँ चोटी पकड़ उसे खींच कर सामने बैठा कर कहती है संभल कर रह ..सुन ले अगर ऊंच नीच हो गई तो ..कितने टुकड़े होंगे गिने नही जाएंगे और आंगन में गड़ी मिलेगी ।मां का इतना कठोर रुप बस इसी 13 -14 बरस में पहली बार देखती हैं लड़कियां फिर माँ की नजरों का पहरा और हर पल घूरती निगाहों की कैद बड़ी असहनीय लगती है ।लोगो की घूरती निगाहों से बचाने के प्रयास में लगी माँ कैसे बदल जाती है और किसी थानेदार सी सुनाई देने लगती है ।जब सब सही चले परिवार के हिसाब से तो मां की बड़ाई होती है लड़कियों को अच्छे से पाला बड़ा किया समझदार बनाया आज्ञाकारी बनाया ।उस मां को सम्मान मिलता है ।इसके विपरीत कोई कदम हुआ तो सब से पहले माँ ही कटघरे में खड़ी जी जाती है ।समझा ले आपणी नै ..तेरी छोरी ..फिर सब सम्बोधन बदल जाते है घर के पुरुष सामने नही आते यह मोर्चा दिया जाता है घर महिलाओं को ही की लड़की को कंट्रोल करें । घर मे लड़की को कैद कर लिया जाता है उसके बाहर निकलने की मनाही है साम दाम दंड भेद की आजमाइश होती है सब तरह का इमोशनल अत्याचार होने के बाद यह अत्याचार शरीरिक हिंसा से आगे बढ़ता हुआ इतनी कठोरता और कटुता में बदलता है कि उस माँ दादी चाची ताई लगभग सब से नफरत होने लगती है कि कैसी मायें हैं ।इस पर भी लड़की न माने घर वालों को चकमा दे कर फिर उसी प्रेमी से मिले अगला कदम होता है कि इसे इस शहर से दूर किसी रिश्तेदार नाना मामा बुआ किसी के भी घर भेज दो फिर वहीं उसका रिश्ता तय कर शादी कर दो ।इस सब मे होता अक्सर यूँ ही है कि लड़कियां पहले दूसरे चरण में ही पिघल जाती है और उनके अनुसार काबू में आ जाती हैं और ब्याह दी जाती हैं ।कभी कभी लड़की नही मान रही होती है पर उसके बारे में हल यही सोचा जाता है कि जल्दी से किसी से भी ब्याह कर दो जो भी जल्दी और आसानी से मिले उसे ढूंढा जाता है और जुबान दे दी जाती है कि लड़की आपकी हुई हाँ भर ली गई है ।अब यही जुबान रखने के लिए भरसक प्रयत्न होंगे ।जिस में पूरा परिवार शामिल होता है । अक्सर लड़का ढूंढने ,देखने घर के बड़े पुरुष ही जाते है और स्वयं ही हाँ कर के भी आ जाते थे ।बाकी परिवार को माँ को तो यही पता चलता कि हाँ कर दी है किसी को ।
और उस हाँ को अब हर हाल में निभाना होता है ।
इस हां ने बहुत बेमेल विवाह भी करवाये ।मुझे इस हाँ को ले कर एक घटना याद है कि मेरे पिता के सहपाठी जो हमारी रिश्तेदारी में थे वे अपनी बहन का रिश्ता करने गए लड़का देखा और हाँ कर दी ।कुछ दिनों में ही पता चला कि लड़के के अपनी विधवा भाभी के साथ सम्बन्ध है और वह अपनी भाभी से ही विवाह करना चाहता है ।इसलिए रिश्ता तोड़ देना चाहिए ।परंतु वे चाचा जी माने ही नही कि मैं खुद हां कर के आया हूँ अपने मुंह से ना नही करेंगे ।बाकी जो होगा वो लड़की का भाग्य होगा ।एन वक्त पर बारात आई हमारी वह बुआ जयमाला के लिए माला डालने ही वाली थी कि विधवा भाभी ने माला छीन कर दूल्हे के गले मे डाल दी ।तब भी विवाह नही रुका।बोला नही फेरे तो होंगे ही ।फेरे भी हो गए ।वह बुआ ससुराल चली गई ।ससुराल में दूल्हे ने बुआ की तरफ देखा तक नही ।वह अपनी भाभी संग सोया ।भाभी दूल्हे के पास और दुल्हन को एक कोठड़ी दी गई जिस में एक खाट थी और उसकी पेटी बुआ जब भी आती बहुत रोती ।पर उसे हर बार कुछ दिनों में ससुराल पंहुचाया जाता ।बुआ ने इसे अपनी नियति मान लिया ।जो ब्याहता थी वह विधवा की तरह रही आजीवन और जो विधवा थी वह ब्याहता की तरह रही ।उसके बच्चे हुए ।बुआ ने उस कोठड़ी में भजन कर के सारी उम्र काट दी ।वह बांदी की तरह बच्चे पालती रही घर संवारती रही ।अपने भाई की एक हाँ के कारण ऐसा जीवन जीने पर अभिशप्त हुई ।पुरुष इतने जिद्दी भी हुआ करते थे जिस की जिद सारे परिवार को माननी पड़ती थी यह वे पुरूष थे जो घर के मुखिया थे ।जिनकी बात मोडनी नही होती थी किसी को भी ।
ऐसे अनुभवों की किस्सों की भरमार मिलेगी ।जो आज की पीढ़ी की लड़कियों को असम्भव लगेगी ।
यह किस्सा तो एक उदाहरण था कि पालक पुरषो की "हाँ "कितनी गंभीर होती समाज मे । और ना करने वाली लड़कियों की नियति तो मौत तक भी पँहुची है ।चलो लौट आते है हॉनर किलिंग विषय पर ही -
अभी इसी रविवार को घटी ताजा घटना का जरा जिक्र कर लेते है औरंगाबाद की वैजापुर तहसील में एक युवक ने मां के साथ मिलकर अपनी गर्भवती बहन का सिर धड़ से अलग कर दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी हथियार लेकर पुलिस स्टेशन पहुंचा और सरेंडर कर दिया। पुलिस ने बयान के बाद उसकी मां को भी गिरफ्तार कर लिया है। मां और बेटा दोनों बहन के प्रेम विवाह करने से नाराज थे।
घटना रविवार शाम को लाड़गांव शिवार गांव में हुई। पुलिस के मुताबिक, आरोपी युवक का नाम संकेत संजय मोटे (18) और महिला का नाम शोभा (40) है। दोनों ने मिलकर 19 साल की कीर्ति अविनाश थोरे की धारदार हथियार से हत्या की है। संकेत बहन से इतना नाराज था कि उसने बहन को जान से मारने के बाद उसका सिर धड़ से अलग किया। यही नहीं, वारदात के बाद भाई हाथ में खून से सना बहन का सिर थामे घर के बाहर आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि वह खत्म हो चुकी है लाड़गांव शिवार में 302 बस्ती में रहने वाले संजय थोरे के बेटे अविनाश ने कीर्ति के साथ घर से भागकर आलंदी में प्रेम विवाह किया था। कोर्ट मैरिज कर दोनों खेत बस्ती गोयगांव में रहने लगे थ जिस से मां और भाई नाराज थे दोनो में मिल कर विवाहिता लड़की का कत्ल कर दिया भाई ने गला काट कर गर्दन अलग की और मुंडी पकड़ कर बाहर आ गया ।इस दौरान मां ने टांगे पकड़ी रखी लड़की की ।भाई ने अपराध स्वीकार कर लिया सेल्फी भी ली कटी हुई गर्दन के साथ दोस्तों को भेजी फिर गिरफ्तार हो गए ।
सोनीपत के गन्नौर में 16 वर्षीय लड़की को परिजनों ने जहर दे कर मार डाला यह घटना 30 अक्टूवर की है ।
पंजाब में अबोहर के गांव सांपा वाली में 17 अक्टूबर को लड़के और लड़की की हत्या कर चौक में डाल दिया 6 घण्टे तक लाश पड़ी रही ।पुलिस ने संज्ञान लिया और हॉनर किलिंग का मामला बताया
इसी वर्ष 29 जुलाई की घटना है हरियाणा के सोनीपत जिले के मलिकपुर गांव की 18 वर्षीय कनिका की हत्या उसके पिता और भाई द्वारा कर दी जाती है पिता ने उसकी ही शाल से गला घोंट कर मार दिया और शव को गंगा में बहा दिया । मामला कुछ इस प्रकार था कि कनिका नामक इस लड़की ने पड़ोस में रहने वाले उसकी पिता की आयु के एक व्यक्ति के साथ प्रेम संबंध स्थापित हो गए । 2020 में वह दोनो घर से भागे और बाहर मेरठ जा कर शादी कर ली और घर लौट आई ।माता पिता के साथ रहने लगी ।लड़की ने कुछ समय बाद बताया कि उस ने शादी कर ली है और वह अब पति के साथ रहना चाहती है माता पिता को दुख तो पंहुचा परंतु कोई प्रतिक्रिया भी नही की ।लड़की पति के साथ रहने लगी फिर जुलाई 2021 में लड़की के पति में अपनी पत्नी के लापता होने की सूचना दी और रिपोर्ट लिखवाई । इसी बीच लड़की का वीडियो सोशल मीडिया में आ गया कि मुझे मेरे माता पिता ने बुलाया है और मैं जा रही हूं और अगर मेरी हत्या हो जाती है तो उसका जिम्मेदार मेरा पिता होगा और फिर वही हुआ लड़की की हत्या कर दी गई। पुलिस पूछताछ में पिता ने कबूल कर लिया कि मैंने लड़की को मार दिया ।उन दिनों मै सोनीपत में थी ।जब यह घटना हुई तो मैने कुछ स्थानीय लोगों से बात इस बाबत बात की तो उनका कहना था कि आप को नही पता दीदी यह तो होना ही था लड़की ने बाप की उम्र के बाप के दोस्त के साथ भाग कर शादी कर ली थी ।बताओ कौन बरदाश्त कर लेगा इतनी बदनामी ।अपनी थी मार ली ।दूसरे का तो नही मारा।
इन दोनों मामलों में हत्या शादी के तुरंत बाद नही की गई बल्कि कुछ वक्त बीत जाने के बाद हुई ।
इस विषय पर यूँ तो एक किताब लिखी जा सकती है परंतु मैं सिर्फ यहां तक आपके चिंतन को ले जाना चाहती हूं कि हम सोचें किस तरह का सामाजिक दबाव होता होगा जिस को सहन कर पाने की क्षमता माता पिता में नही रह पाती ।सामाजिक लज्जा को फख्र में परिवर्तित किये जाने के परिजन हत्या कर देते हैं । ऐसी हत्या को समाज ही महिमा मंडित करता है ।उसे इज्जतदार बताया जाता है कि लड़की ने ऐसा कर के जो बेइज्जत किया था परिवार को तो वह प्रतिष्ठा लौट आई है ।कि इज्जत वाले थे इसलिए ठीक काम कर दिया ।जिनकी लड़की भाग जाएं घर से वो तो समाज मे मुंह दिखाने लायक नही ।जिसके ताने उन्हे प्रत्यक्ष या परोक्ष में मिला भी करते हैं ।उन तानों का वजन इतना है कि उसके सामने एक दो जानें तो हल्की पड़ती है ।
इस से मुझे पंजाब का एक केस आया जिस में लड़की ने घर छोड़ा और अपनी पसंद से शादी कर ली अपना घर बसा लिया । लगभग डेढ़ या दो साल बाद लड़की का भाई और मां बाप लड़की से मिलने की इच्छा प्रकट करते हैं उसे बताया जाता है कि उन्होंने माफ कर दिया है ।लड़की अपना पता बताती है और भाई आता है और का कत्ल कर देता है ।भाई बयान देता है कि इस ने शादी कर के खुद को तो सुखी कर लिया लेकिन हमारी जिंदगी नरक हो गई ।साल भर से लोगों से ताने उलाहने सुन कर वह गांव में रहने लायक नही रहे थे ।हमारा खाना पीना सोना भी दूभर हो गया था हम हर रोज लज्जित हो रहे थे ।हमारे पास तानों का जवाब नही था मैंने अब जड़ ही खत्म कर दी ।अब हमें कोई बेशर्म तो नही कहेगा ।
बहुत से संभ्रात परिवार बड़े जमींदार घरों में लड़कियों की हत्या बड़े चुपचाप ढंग से बिना शोर मचाये की जाती है जिस में या तो जहर दे दिया जाता है या गला दबा कर या कभी तेजधार से और बाहर समाज लड़की का हार्ट अटैक ,या कोई बीमारी या फिर सिर की नस फटने जैसा कारण बता दिया जाता है ।सदियों से ही जवान लड़कियों को मर जाना शंका को जन्म देता है ।अक्सर किसी जवान लड़की की मौत हो जाने पर आज भी लोग सोचते भी यही लड़की गर्भ से होगी जरूर। जिसे छिपाने के लिए मार दिया गया है ।क्योंकि बरसो से ऐसे ही तो ठिकाने लगाया जाता है उन लड़कियों को जो किसी गरीब मजदूर या ,नीची जाति के लड़के संग प्रेम में पड़ जाती है उन्हें भी ऐसे ही मारा जाता रहा है ।और ऐसे भी कई मौके हुए जहां घर वालों में लड़की को किसी के साथ आपत्तिजनक हालात में साक्षात देख लिया तो आहत परिजनों ने तुरंत गुस्से के उस आवेश में ही काम खत्म कर दिया । घराने दार बड़े जमींदार इज्जतदार घरों की लड़कियों का तो समाज ने यही इलाज किया है जब बड़े रुतबे वाले यही कर रहे हैं तो निचले वाले भी तो यही अनुसरण करेंगे आखिर इज्जत तो उनकी भी है ।यहां बात सिर्फ बेटियों की नही पत्नियों की भी है उनको भी इसी तरह से जान से हाथ घोने पड़े हैं।खेत मजदूर जिसे सिरी भी कहा जाता है जो दलित भी है उस के साथ लड़की को आपत्तिजनक देख लिया गया तो मौत देना निश्चित था इस से पहले कि वो घर से भाग जाएं या फिर गर्भ में कुछ ले आएं ।उनका निपटारा कर दिया ही जाना होता है जो आज भी है ही ।यहां बात सिर्फ हरियाणा की नही पंजाब उत्तर प्रदेश राजस्थान में मामले ही मामले है यहां तक पाकिस्तान के पंजाब सूबे में तो एक वर्ष में 81 औरतो के कत्ल कर दिए गए ।भारत मे देश भर से अलग अलग राज्यो से आने वाले ऐसे मामले लगभग समान हैं गरीब लड़की का सम्पन्न से सम्बन्ध हो जाये तो आपत्ति नही क्योंकि यह तो हुआ ही करते हैं पर विवाह नही हुआ करते।इसे तो खेलने खाने के दिन में ऐसा करना तो सम्मान दिलवाता है परंतु इसके बिल्कुल विपरीत अमीर लड़की का किसी गरीब से हो और गर्भ ठहर जाए तो उसकी मौत निश्चित थी ।आज भी ऐसा होता है ।बचपन से हम यह किस्से सुनते आए हैं अपनी बड़ी बूढीयो के मुख से जो आपस मे बात करती थी पर हमें भगा देती थी । उस छोटी आयु में जिस बात के लिए रोका जाए तो उसकी दोगुनी जिज्ञासा होती थी यह तो जरूर सुनी जानी चाहिए ।छिप छुप कर कान लगा कर हम भी सुनते थे तो थोड़ा बहुत तो हमारे भी पल्ले पड़ता था तो डर लगता था रात को नींद नही आती थी ।गांव में अखबार तो होते नही थे ।बस बात ही करते थे लोग ।दबी जुबान से चर्चाएं होती रहती थी समाज मे ।
मार देना हत्या कर देना आसान लगता है समाज के ताने सुनने से तो सोचो कि तानों का वजन कितना ज्यादा है।
अक्सर लोग जब ताना देते हैं तो यही कहते है कि इनकी लड़की भाग गई हमारी गई होती तो हम तो कत्ल कर देते ।हम तो फांसी पर लटका चुके होते ।ये कितने बेशर्म हैं इन पर कोई असर नही है ।
मजाक उपहास लज्जित करना यह सब तानों उलाहनों में शामिल होता है जो इतना भारी पड़ता है कि लोग हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं ।यह मनोविज्ञान का विषय है कि उलाहने लज्जित करने वाले वाक्य इंसान में कैसा प्रभाव पैदा करते है किस तरह का असर करते है कि वे हत्यारे हो जाते है ।हमारी लड़की ने भाग कर शादी की हम तो भुला सकते हैं पर समाज आप को प्रतिदिन याद करवाएगा ।अगली पीढ़ी तक को याद करवा दिए जाने की परंपरा रही है ।
अब इस बात पर मैं उस कबीलाई समय की कल्पना कर सकती हूँ जब लोग झुंडों में कबीलों में रहते थे ।गुफाओं का रहना और शिकार का मासाहार और उन कबीलों में भी थी स्त्रियां जो कबीले वालों की मलकियत ही थी ।कबीले से बाहर औरत को लड़की को नही दिया जाता था ।स्त्रियां एक के बाद दूसरा तीसरा चौथा और 12 .13 .14 ..और अधिकतर स्त्रियां प्रसव काल मे ही मर जाती थी ।स्त्रियों की संख्या कम हो गई थी ।औरतो को चुराना ,भगा ले जाना ,औरतो के लिए लड़ना उन कबीलों में जारी था ।अगर कोई लड़की किसी अन्य कबीले वाले पुरुष के साथ चली गई तो उनकी मृत्य निश्चित थी ।लड़ कर वापिस ले आते है और यही मार काट मची कबीलों में भी ।बाद में तो समाज बहुत कुछ हुआ लड़ाईयो से बचने के समझौते में लड़कियां दी जाने लगी ।विवाह के लिए दी जाने लगी ।फिर बाकी व्यवस्थाएं और प्रथाएं बनती गई ।
कबीले की मर्जी के खिलाफ चलने वाली लड़कियों को मौत के घाट तो कबीले वाले भी उतार रहे थे ।वही आज भी है इस वर्तमान समय भी ताना वही है कि तुम कैसे सरदार ? लड़की निकल कैसे गई तुम्हारे नियंत्रण से ।
तुम तो अब सरदार कहलाने लायक नही बचे ।
यही सरदारी बचा रहे हैं जो सिर्फ सामाजिक कल्पना है और यह कल्पना पितृ सत्ता की देन है वह पितृ सत्ता का ही विधान है ।जो मस्तिष्क में बैठ गया है ।
प्रसंशा कुछ देर असर करती है लज्जा लम्बे समय तक दिमाग से घर बनाये रखती है ।लज्जित किये जाने वाले शब्द बार बार गूंजते है एक समय मन की स्तिथि भीतर से यही हो जाती है शायद सभी इसी बारे में सोच विचार रहे हैं और सभी लोग ही लज्जित कर रहे है या उसकी चर्चा कर रहे हैं या उस प्रकरण की बात कर के हंस रहे हैं व्यंग्य कर रहे हैं।
शेष अगली पोस्ट में
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