खबूसूरत भू भाग का स्वामी भारत देश अद्भुत है अतुलनीय है । इसका अनुपम भुगौलिक दर्शन चकित करता है और उस से भी ज्यादा चकित करता हैं यहां का समाज उसकी मान्यताएं और परंपराएं ।आज हम जिक्र करेंगे एक अनोखे मंदिर का जिसका नाम है
बुलेट बाबा का मंदिर' यह मंदिर जोधपुर-पाली हाइवे नमम्बर 65 से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. ये बुलेट बाबा कोई इंसान बाबा नही बल्कि एक बुलेट मोटर साइकल जी इस मंदिर के इष्ट हैं भगवान है ।इसके पीछे की कहानी यह है कि राजस्थान के पाली शहर के पास स्थित चोटिला गांव के रहने वाले ओम बन्ना(Om Banna) नामक एक शख्स वर्ष 1988 में बुलेट बाइक पर अपने ससुराल से घर जा रहे थे. दुर्भाग्यवश उनकी यह यात्रा पूरी नहीं हुई और रास्ते में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई वे अपनी मोटरसाइकिल पर नेशनल हाईवे नम्बर से गुजर रहे थे कि अचानक वे अपना संतुलन खो बैठे और गाड़ी पेड़ से जा कर टकराई और जिंदगी खत्म हो गई।
पुलिस ने दुर्घटना स्थल का मुआयना किया और बुलेट मोटर साइकिल को अपने साथ थाने में ले गए ।ऐसा कहा जाता है कि अगले दिन सिपाहियों को वह मोटर साइकिल थाने में नही मिली ।खोज की तो वह बुलेट मोटरसाइकिल दुर्घटना स्थल पर खड़ी मिली ।
पुलिस से सिपाही फिर से उस बुलेट को थाने में ले गए और अगले रोज भी यही हुआ मोटरसाइकिल गायब थी और वह फिर से दुर्घटना स्थल पर मिली। सिपाही फिर से उसे थाने में ले आये और बुलेट को जंजीरों से बांध दिया ताकि कोई उसे ना ले जा सके ।परंतु अगले दिन जंजीरों से बंधी बुलेट फिर से थाने से गायब हो गई और ढूंढने पर वह दुर्घटना स्थल पर ही मिली ।बात उड़ते उड़ते .मृतक .के पिता के पास पँहुची तो उन्होंने दुर्घटना स्थल पर उसका मंदिर बनवा दिया ।तब से यहीं पर बुलेट बाबा के मंदिर के झंडे झूल रहे हैं और प्यारे श्रद्धालुओं की ,दर्शन करने वाली की , सख्यां बढ़ती जा रही है ।लोग दान और चढ़ावा देते है और तो और लोग मृतक की मूर्ति को शराब भी चढ़ाते है भोले भक्त तो मूर्ति के मुख को भी शराब लगा कर अपनी श्रद्धा का फर्ज अदा कर रहे हैं
एक बात जो इस मंदिर के बारे में स्थापित की गई है वह यह कि यह बुलेट बाबा यात्रियों का रक्षक है इस हाईवे पर जाने वाले यात्रियों की रक्षा करता है और साथ ही यह भय भी स्थापित किया गया है अगर कोई यात्री बुलेट बाबा के दर्शन नही करता तो उसकी यात्रा सफल नही होती ।वह दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है उसकी यात्रा पूरी नही होती ।
इसलिए इस हाईवे पर गुजरने वाला हर व्यक्ति इस बुलेट बाबा के मंदिर पर ब्रेक जरूर लगाता है और दर्शन कर के आगे बढ़ता है यात्रा की सफलता की प्राथना करने वाले की बुलेट बाबा जरूर सुनते है और बुलेट बाबा को इग्नोर करने वाले यात्री तो अपने जीवन नामक सामान के खुद जिम्मेदार है ।और मरने का भय तो इंसान से कुछ भी करवा सकता है । जिंदगी बचाने के लिए बुलेट बाबा के यहां ब्रेक लेने में बुराई ही क्या है और कुछ पल ठहर कर सुस्ताने कर दुर्घटना से बच जाने का उपाय तो बहुत सस्ता और सब यात्रियों की पँहुच के बीच है
दोस्तो कहानी अभी खत्म नही हुई है बेशक हम इसे एक जानकारी के तौर पर देख रहें हैं पर हम सब को हर मान्यता और विश्वास को वैज्ञानिक ढंग से भी देखना आना चाहिए और तर्क भी करना चाहिए ।वीमेन टीवी का उद्देश्य किसी भी विश्वास को चुनौती देना या किसी भी विश्वास को स्थापित करना तो कतई नही है बल्कि आप की और हमारी बुध्दि को सतर्क रखना है वैज्ञानिक सोच को आगे बढाना है ।चलिए बताते हैं कि
कोई भी लोक मान्यता कैसे बनती है या बनाई जाती है?इसकी प्रक्रिया क्या है ? लोक मान्यता आखिर है क्या ?
लोक विश्वास का अर्थ है लोक + विश्वास यानी लोगों का विश्वास ।मान्यता का मतलब -जिसे मान लिया गया है लोक मान्यता का भी अर्थ भी वही कि जिसे लोगों ने मान लिया है ।अब समझते हैं कि इसकी प्रक्रिया क्या है -
जब किसी एक व्यक्ति के विचार पर या अनुभव पर या कुछ व्यक्तियों के सामूहिक अनुभव या विचार पर बाकी लोग धीरे धीरे विश्वास करने लगते हैं बिना तर्क किये बिना खोज किये बिना वैज्ञानिकता सिद्ध किये और उसी विचार को मान कर आगे आगे बढाते रहते हैं तो वह आगे चल कर एक स्थापित मान्यता बन जाती है ।कई बार एक विचार के आसपास संयोग से समान घटनाये घट जाती है जो वह भी लोक विश्वास बन जाता है और यह स्थापना बहुत तेजी से होती है ।जैसे मान लीजिए कि किसी ने कहा कि मुझे सपना आया है कि इस सड़क पर पहले एक आस्था का स्थल था और यह सड़क किनारे पुराना पेड़ उसी आस्था स्थल का है जो भी इस मार्ग से गुजरे तो इसके पत्ते वाहन में रख ले जाये अन्यथा दुर्घटना होनी तय है ।और स्वप्नदृष्टा व्यक्ति ऐसा कर ले ।और कुछ ही रोज बाद संयोग से एक दो दुर्घटना हो जाये तो इस विचार को मान्यता मिलने में कुछ ही दिनों का समय लगेगा कि पेड़ के पत्ते वाहन में नही रखने से दुर्घटना हुई है ।यह विचार इतना जल्दी लोक मान्यता बनेगा यानी इतनी जल्दी यह लोक विश्वास स्थापित होगा कि आप अंदाजा भी न लगा सको ।अधिकतर इस तरह की लोक मान्यताओं के पीछे डर का मनोविज्ञान काम करता है कहीं हमारे साथ कुछ बुरा न घट जाए अनहोनी न घट जाए कहीं नुकसान न हो जाये ।हमें दर्घटनाओ से डर लगता है और डर से ही अनेक लोक मत बने और सींचे गए हैं ।
कुछ मान्यताएं स्थापित होने में बरसों लगते है और कुछ चुटकियों में जम जाती है ।आगे चल कर यही परंपरा बन जाती है जिसे अगली पीढियां भी बिना सवाल किए पालन किये जाती हैं ।परंपरा मानने वालों के मन मे कोई प्रश्न होता ही नही बस एक विचार होता है सदियों से हमारे बुर्जुग ऐसा करते आये हैं उन्होंने कुछ तो सोचा होगा तभी करते होंगे ।और इस पूरी प्रक्रिया का दृढ़तम दृश्य यह होता है कि जब लोग परंपरा को निभाते चले जाने का यह तर्क देने लगते है कि ऐसा करते रहना हमारे पूर्वजों का सम्मान करना है और बड़ो का सम्मान करना हमारी संस्कृति है और इस विचार के आगे सब तर्क खत्म हो जाते है और एक दिन इस परंपरा के गिर्द विस्तृत बाजार पनप जाता है ।यह सब होते आप देख सकते हैं । विश्वास की सूक्ष्म शक्तियों का अलग ज्ञान है जिस से विज्ञान की मुठभेड़ होती रहती है ।सूक्ष्म अति सूक्ष्म शक्तियां जिनके बारे में हम केवल सुनते है पर जानते नही है उसकी वैज्ञानिकता प्रमाणित नही की गई है ।हम हर उस चीज से डरते है जिसके बारे में हम जानते नही है ।अज्ञानता भय का सबसे बड़ा कारण है ।यह भी एक अलग विषय पर जिस पर विस्तार से लिखा जा सकता है चर्चा की जा सकती है ।
पर अभी हम लौटते हैं विषय पर बुलेट बाबा के मंदिर की तरफ -और सवाल यही है क्या कोई यह सत्यापित करेगा कि बाइक खुद चल कर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जा सकती है ?चूंकि अभी घटना 1988 की ही है तो उस घटनाओं के प्रत्यक्ष दर्शी भी जरूर जिंदा ही होंगे ।क्या वह जनता के सामने आ कर इस वृतांत को सुना सकते हैं क्या उनके सुनाए वृतांत का मनोवैग्यानिक परीक्षण किया जा सकते है ।क्या आप भी मानते है कि मोटरसाइकिल अपने आप बार बार जंजीरो से बंधे होने के बावजूद दुर्घटना स्थल पर जा सकती है ।जिनको लगता है कि कुछ भी हो सकता है उनके लिए यह हो ही सकता है उनके लिए तो हुआ भी है ।बाकी जिन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तर्क चाहिये होता है कुछ मानने के लिए वे ऐसे स्थलों का अवलोकन पर्यटन के तौर पर कर लेते हैं । कौन ऐसा सरफिरा है किस के पास समय है जो अब य यह सब खोजने निकलेगा ।किसी ऐसे स्थल की मान्यता को चुनौती देना चाहेगा जिस के पार्श्व में किसी मां बाप की भावनाएं जुड़ी हो जिन्होने भावना वश अपने बच्चे के मंदिर को बनवाया हो उसकी देख रेख करते हों ।हम भावना प्रधान देश के लोग है ।और भावनाओं के उत्सव मनाया करते हैं ।यही भावना के गिर्द रोजगार और व्यापार पनप जाता है तो कुछ लोगों को पेट के लिए रोटी मिलने लग जाती है कोई चाय की दुकान वाला ,कोई सफाई वाला ,कोई शराब की बोतल बेचने वाला कोई चढ़ावा प्रसाद की दुकान वाला ।ऐसे में यह फलेगा फूलेगा ही । आस्था से तो सरकार भी जल्दी से अतिक्रमण नही करती और यही कहानियां पर्यटन स्थलों में बदल जाया करती है और लोग लोगों के अजूबे देखने आया ही करते हैं यूं भी इंसान तगड़ा कहानी खोर है हम कहानियां सुनते है और सुनाते चले जाते हैं ।यूं इस तरह जिंदगी दिलचस्प बनी रहती है ।
चलते चलते बता दूं कि देश मे इस प्रकार के अजूबे रोचक मिथों पर बने पूजा स्थलों की सूची बहुत लम्बी है उनकी चर्चा फिर करेंगे
कार मारुति अम्मा की जय !! टाटा ट्रक की जय !!सांड बाबा की जय !!
सुनीता धारीवाल @ कानाबाती के लिए किस्सागोई
जबरदस्त।
जवाब देंहटाएंधर्म के नाम पर लोगों से कुछ भी करवाया जा सकता है...
जवाब देंहटाएंकिस्से,कहानियाँ,विश्वास,अंधविश्वास,मान्यताएँ,परम्पराएँ ही हमारी आस्था को प्रभावित कर हमें एक नई दिशा में ले जाते हैं।
जवाब देंहटाएं-पूजा सूद डोगर
हटाएंशिमला
✍ बहुत अच्छा लगा 🙏🏻🌱
जवाब देंहटाएंstory achi hai bt kitne sch hai yai nhi ptaa
जवाब देंहटाएंइसके लिए आप को एक बार स्वयं जाना पड़ेगा ।बहुत लोग जाते हैं जल्द ही आपको विडियो भी देखने को मिलेगा ।मन्दिर है और उसके ताजा वीडियो भी हैं ...लोक मान्यता का वैज्ञानिक पुष्टिकरण लगभग मुश्किल ही होता है
हटाएंमैंने पूरा किस्सा पढ़ा है। हमारे देश के लोग अंध विश्वास में ज्यादा विश्वास करते हैं। इस लिए अंध भक्त हैं। कहानी के वारे जानकारी होनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंपढ़ें लिखे लोग ज्यादा अंध भक्त होते हैं जी।
There’s are many such temples/places of worship in our country about which such stories are narrated by people but we all know these claims cannot stand against rational thinking.
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