कानाबाती

वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर

रविवार, 26 दिसंबर 2021

बुलेट बाबा का मंदिर - देखना जरुरी है और इसे पढ़ना और भी जरूरी

खबूसूरत भू भाग का स्वामी  भारत देश  अद्भुत है अतुलनीय है । इसका अनुपम भुगौलिक दर्शन चकित करता है और उस से भी ज्यादा चकित करता हैं यहां का समाज उसकी मान्यताएं और परंपराएं ।आज हम जिक्र करेंगे  एक अनोखे मंदिर का जिसका नाम है 
बुलेट बाबा का मंदिर'  यह मंदिर जोधपुर-पाली हाइवे नमम्बर 65  से 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. ये बुलेट बाबा कोई इंसान बाबा नही बल्कि एक बुलेट मोटर साइकल जी इस मंदिर के इष्ट हैं भगवान है ।इसके पीछे की कहानी यह है कि राजस्थान के   पाली शहर के पास स्थित चोटिला गांव के रहने वाले ओम बन्ना(Om Banna) नामक एक शख्स वर्ष 1988 में बुलेट बाइक पर अपने ससुराल से घर जा रहे थे. दुर्भाग्यवश उनकी यह यात्रा पूरी नहीं हुई और रास्ते में एक सड़क हादसे में उनकी मौत हो गई वे अपनी  मोटरसाइकिल पर नेशनल हाईवे नम्बर से गुजर रहे थे कि अचानक  वे अपना संतुलन खो बैठे और गाड़ी पेड़ से जा कर टकराई  और जिंदगी खत्म हो गई।
पुलिस ने दुर्घटना स्थल का मुआयना किया और बुलेट मोटर साइकिल को अपने साथ थाने में ले गए ।ऐसा कहा जाता है कि अगले दिन सिपाहियों को वह मोटर साइकिल थाने में नही मिली ।खोज की तो वह बुलेट मोटरसाइकिल दुर्घटना स्थल पर खड़ी मिली ।
पुलिस से सिपाही फिर से उस बुलेट को थाने में ले गए और अगले रोज भी यही  हुआ मोटरसाइकिल गायब थी और वह फिर से दुर्घटना स्थल पर मिली। सिपाही फिर से उसे थाने में ले आये और बुलेट को जंजीरों से बांध दिया ताकि कोई उसे ना ले जा सके ।परंतु अगले दिन जंजीरों से बंधी बुलेट फिर से थाने से गायब हो गई और ढूंढने पर वह दुर्घटना स्थल पर ही मिली ।बात उड़ते उड़ते .मृतक .के पिता के पास पँहुची तो उन्होंने दुर्घटना स्थल पर उसका मंदिर बनवा दिया ।तब से यहीं पर  बुलेट बाबा के मंदिर के झंडे झूल रहे हैं और प्यारे  श्रद्धालुओं की ,दर्शन करने वाली की , सख्यां बढ़ती जा रही है ।लोग दान और चढ़ावा देते है और तो और लोग मृतक की मूर्ति को शराब भी चढ़ाते है भोले  भक्त तो मूर्ति के मुख को भी शराब लगा कर  अपनी श्रद्धा का फर्ज अदा कर रहे हैं  

एक बात जो इस मंदिर के बारे में स्थापित की गई है वह यह कि यह बुलेट बाबा यात्रियों का रक्षक है इस हाईवे पर जाने वाले यात्रियों की रक्षा करता है और साथ ही यह भय भी स्थापित किया गया है अगर कोई यात्री बुलेट बाबा के दर्शन नही करता तो उसकी यात्रा सफल नही होती ।वह दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है उसकी यात्रा पूरी नही होती ।
इसलिए इस हाईवे पर गुजरने वाला हर व्यक्ति इस बुलेट बाबा के मंदिर पर ब्रेक जरूर लगाता है और दर्शन कर के आगे बढ़ता है यात्रा की सफलता की प्राथना करने वाले की बुलेट बाबा जरूर सुनते है और बुलेट बाबा को इग्नोर करने वाले यात्री तो अपने जीवन नामक सामान के खुद जिम्मेदार है ।और मरने का भय तो इंसान से कुछ भी करवा सकता है । जिंदगी बचाने के लिए बुलेट बाबा के यहां ब्रेक लेने में बुराई ही क्या है और कुछ पल ठहर कर  सुस्ताने कर दुर्घटना से बच जाने का उपाय तो बहुत सस्ता और सब यात्रियों की पँहुच के बीच है 

दोस्तो कहानी अभी खत्म नही हुई है बेशक हम इसे एक जानकारी के तौर पर देख रहें हैं पर  हम सब को हर मान्यता और विश्वास को वैज्ञानिक ढंग से भी देखना आना चाहिए और तर्क भी करना चाहिए ।वीमेन टीवी का उद्देश्य किसी भी विश्वास को चुनौती देना या किसी भी विश्वास को स्थापित करना तो  कतई नही है बल्कि आप की और हमारी बुध्दि को सतर्क रखना है वैज्ञानिक सोच को आगे बढाना है ।चलिए बताते हैं कि 
कोई भी लोक मान्यता कैसे बनती है या बनाई जाती है?इसकी प्रक्रिया क्या है ? लोक मान्यता आखिर है क्या ? 
 लोक विश्वास का अर्थ है लोक + विश्वास यानी लोगों का विश्वास ।मान्यता का मतलब -जिसे मान लिया गया है लोक मान्यता का भी अर्थ भी  वही कि जिसे लोगों ने मान लिया है ।अब समझते  हैं कि इसकी प्रक्रिया क्या है -
जब किसी एक व्यक्ति के विचार पर या  अनुभव पर या कुछ व्यक्तियों के सामूहिक अनुभव या विचार पर  बाकी लोग धीरे धीरे विश्वास  करने लगते हैं  बिना तर्क किये बिना खोज किये बिना वैज्ञानिकता सिद्ध किये और उसी विचार को मान कर आगे आगे  बढाते रहते हैं तो वह आगे चल कर एक स्थापित मान्यता बन जाती है ।कई बार एक विचार के आसपास संयोग से समान घटनाये घट जाती है जो वह भी लोक विश्वास बन जाता है और यह स्थापना बहुत तेजी से होती है ।जैसे मान लीजिए कि किसी ने कहा कि  मुझे सपना आया है कि इस सड़क पर पहले एक आस्था का स्थल था और यह सड़क किनारे पुराना  पेड़ उसी  आस्था स्थल का है  जो भी इस मार्ग से गुजरे तो  इसके पत्ते वाहन में रख ले जाये अन्यथा दुर्घटना होनी तय है ।और  स्वप्नदृष्टा  व्यक्ति ऐसा कर ले  ।और  कुछ ही रोज बाद  संयोग से एक दो  दुर्घटना हो जाये तो इस विचार को मान्यता मिलने में कुछ ही दिनों का समय लगेगा कि  पेड़ के पत्ते वाहन में नही रखने से दुर्घटना हुई है ।यह विचार इतना जल्दी लोक मान्यता बनेगा यानी इतनी जल्दी यह लोक विश्वास स्थापित होगा कि आप अंदाजा भी न लगा सको ।अधिकतर इस तरह की लोक  मान्यताओं के पीछे डर का मनोविज्ञान काम करता है कहीं हमारे साथ कुछ  बुरा न घट जाए  अनहोनी न घट जाए कहीं नुकसान न हो जाये ।हमें दर्घटनाओ से डर लगता है और डर से ही अनेक लोक मत बने और सींचे गए हैं ।
कुछ मान्यताएं स्थापित होने में बरसों लगते है और कुछ चुटकियों में जम जाती है ।आगे चल कर यही परंपरा बन जाती है जिसे अगली पीढियां भी बिना सवाल किए पालन किये जाती हैं ।परंपरा मानने वालों के मन मे कोई प्रश्न होता ही नही बस एक विचार होता है सदियों से हमारे बुर्जुग ऐसा करते आये हैं उन्होंने कुछ तो सोचा होगा तभी करते होंगे ।और इस पूरी प्रक्रिया का दृढ़तम दृश्य यह होता है कि जब लोग परंपरा को निभाते चले जाने का यह तर्क देने लगते है कि ऐसा करते रहना हमारे पूर्वजों का सम्मान करना है और बड़ो का सम्मान करना हमारी संस्कृति है और इस विचार के आगे सब तर्क खत्म हो जाते है और एक दिन इस  परंपरा  के गिर्द विस्तृत बाजार पनप जाता है ।यह सब होते आप देख सकते हैं । विश्वास की सूक्ष्म शक्तियों का अलग ज्ञान है जिस से विज्ञान की मुठभेड़ होती रहती है ।सूक्ष्म अति सूक्ष्म शक्तियां जिनके बारे में हम केवल सुनते है पर जानते नही है उसकी वैज्ञानिकता प्रमाणित नही की गई है ।हम हर उस चीज से डरते है जिसके बारे में हम जानते नही है ।अज्ञानता भय का सबसे बड़ा कारण है ।यह भी एक अलग विषय पर जिस पर विस्तार से लिखा जा सकता है चर्चा की जा सकती है ।
पर अभी हम लौटते हैं विषय पर बुलेट बाबा के मंदिर की तरफ -और सवाल यही है क्या कोई यह सत्यापित करेगा कि बाइक खुद चल कर एक स्थान से दुसरे स्थान पर जा सकती है ?चूंकि अभी घटना 1988 की ही है तो उस घटनाओं के प्रत्यक्ष दर्शी भी जरूर जिंदा ही होंगे ।क्या वह जनता के सामने आ कर इस वृतांत को सुना सकते हैं क्या उनके सुनाए वृतांत का मनोवैग्यानिक परीक्षण किया जा सकते है ।क्या आप भी मानते है कि मोटरसाइकिल अपने आप बार बार जंजीरो से बंधे होने के बावजूद दुर्घटना स्थल पर जा सकती है ।जिनको लगता है कि कुछ भी हो सकता है उनके लिए यह हो ही सकता है उनके लिए तो हुआ भी है ।बाकी जिन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तर्क चाहिये होता है कुछ मानने के लिए वे ऐसे स्थलों का अवलोकन पर्यटन के तौर पर कर लेते हैं । कौन ऐसा सरफिरा है किस के पास समय है जो अब य यह सब खोजने निकलेगा ।किसी ऐसे स्थल की मान्यता को चुनौती देना चाहेगा जिस के पार्श्व में किसी मां बाप की भावनाएं जुड़ी हो  जिन्होने भावना वश  अपने बच्चे के मंदिर को बनवाया हो उसकी देख रेख करते हों ।हम भावना प्रधान देश के लोग है ।और भावनाओं के उत्सव मनाया करते हैं ।यही भावना के गिर्द रोजगार और व्यापार पनप जाता है तो कुछ लोगों को पेट के लिए रोटी मिलने लग जाती है कोई चाय की दुकान वाला ,कोई सफाई वाला ,कोई शराब की बोतल बेचने वाला कोई चढ़ावा प्रसाद की दुकान वाला ।ऐसे में यह फलेगा फूलेगा ही । आस्था से तो सरकार भी जल्दी से अतिक्रमण नही करती और यही कहानियां पर्यटन स्थलों में बदल जाया करती है और लोग लोगों के अजूबे देखने आया ही करते हैं यूं भी इंसान तगड़ा कहानी खोर है हम कहानियां सुनते है और सुनाते चले जाते हैं ।यूं इस तरह जिंदगी दिलचस्प बनी रहती है ।
चलते चलते बता दूं कि देश मे इस प्रकार के अजूबे रोचक मिथों पर बने पूजा स्थलों की  सूची बहुत लम्बी है उनकी चर्चा फिर करेंगे 
कार मारुति अम्मा की जय !!  टाटा ट्रक की जय !!सांड बाबा की जय !!

सुनीता धारीवाल @ कानाबाती के लिए किस्सागोई 

प्रस्तुतकर्ता कानाबाती पर 12:42 am 9 टिप्‍पणियां:
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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

हम शहरी नस्ल के लोग और यह बड़ी बिल्लियां ...तेंदुए -और गद्दी कुत्ते और कहानियां

आप इस कुत्ते की तस्वीर को देख कर बताएं कि इस के गले मे लोहे का यह अजीब का पट्टा क्या है क्यों है 

हो सकता है बहुत से लोग इसके बारे में जानते हो और बहुत से लोग मेरी तरह न भी जानते हों ।इस पट्टे का सम्बंध है जंगली तेंदुओं से कुत्ते की गर्दन को बचाना ।क्योंकि तेंदुआ कोई भी शिकार करेगा तो गर्दन से पकड़ेगा ।गर्दन पर हमला करते ही वह इस पट्टे पर लगे नुकीले कवच से चोट खायेगा और पीछे हटेगा ।बहुत बार इस के कारण  कुत्तों की जान बच जाती है ।जिस क्षेत्र में जंगली जानवर है वह कुत्तो को पालते है  और रात को कुत्ते को घर के बाहर खुला छोड़ देते है ताकि किसी भी आहट पर कुत्ता भौक कर सूचना दे सके ।
बहुत से तेंदुए घरो की ओर हमला करते है यह जानते हुए कि कुत्ता तो जरूर मिलने वाला है ।और यह भी मान्यता है कि कुत्ते का मास तेंदुए को प्रिय है जो भी जानवर नमक का सेवन करता है उसका मास स्वादिष्ट हो जाता है कुत्ता मनुष्य के घर का नमक से बना भोजन खाता है तो वह जंगली तेंदुए के लिए स्वादिष्ट शिकार है ।चलिए अब थोड़ा तेंदुओं के बारे में भी जान लेते हैं




भारत मे तेंदुआ हिमाचल ,उत्तरांचल ,आसाम ,राजस्थान ,महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के जंगलों में पाया जाता है।जंगल सिमटते जा रहे है और हम विकास की अन्धाधुंध दौड़ में इन रह वासियो के घरौंदे उजाड़ रहे है कभी कभी यह साथ मनुष्य की बस्तियों में आ जाते है तो हम उन्हें खदेड़ देते हैं और मार भी देते हैं ।धरती पर रहने वाला जीव और जीवन बहुत रोचक है सब की अपनी अपनी विशेषता है अपनी अपनी कमजोरी ।
तेन्दुआ पैन्थरा प्रजाति का एक विडाल है जो मुख्यतः अफ़्रीका और एशिया में पाया जाता है। यह विडाल प्रजातियों जैसे शेर, बाघ और जैगुअर की तुलना में सबसे छोटा होता है। लेकिन तेंदुए बहुत शक्तिशाली और चतुर जीव है और इनकी एकाग्रता तो लाज़वाब होती है। शिकार को पकड़ने की तकनीक और हमला करने की शैली इन्हें एक अव्वल दर्जे का शिकारी बनाती है। यह पेड़ पर चढ़ जाता है और अव्वल दर्जे के तैराक होते हैं ।
अब तो हम ने इन जंगली जीवों को अभ्यरणयो में छोड़ दिया है या जंगल सीमित कर दिये है अगर हम अपने बुजुर्गों से कहानियां सुने तो वे इन बड़ी बिल्लियों की आंखों देखी कहानियां सुनाया करते थे।हमारी बाल कहानियों  में पाठ्य  पुस्तको में शेर चीते तेंदुए होते थे ।
 पुस्तकों  में भी जंगली जानवरों की कहानियां थी 
पर अब नही है हम हमारे बच्चों के लिए पाठ है कि यह जंगली जानवर खत्म हो रहे हैं हम ने इन्हें कैसे बचाना है ।
देश मे जगंलों और जंगली जानवरों को ले कर कुछ परंपराएं मान्यताये और व्यवस्थाएं तो   अभी भी कायम है कि इन जंगली जानवरों से कैसे पेश आया जाए ।हिमाचल के गद्दी समुदाय के लोग भेड़ बकरियां पालते हैं और  लंबी यात्रा करते हैं सर्दियों में मैदानी इलाकों की ओर गर्मियों में ऊपर की ओर यात्रा करते हैं अपने इस पशु धन की  रेवड की रक्षा करने के लिए यह पहाड़ी कुत्ता पालते हैं इसे  गद्दी कुत्ता भी कहते हैं 


 उत्तराखंड क्षेत्र में इस कुत्ते तो भोटिया भी कहते है यह कुत्ता पूरे रेवड को नियंत्रण में रखता है और जंगली बाघो और तेन्दुओ  से भी रक्षा करता है यह कुत्ता तेंदुओं से भी टक्कर लेता है भिड़ जाता है । “भोटिया कुत्ता”। यह नाम सुनते ही हर कोई अपने मन में एक भारी-भरकम, बड़े जबड़े वाला, आक्रमक, भीमकाय शरीर वाले कुत्ते चित्रण कर लेता है। भोटिया कुत्ता अपनी वफादारी के लिए पहाड़ों में काफी प्रचलित है। उसका भीमकाय शरीर देख कर पहाड़ों के जंगली जानवर जैसे बाघ, तेंदुए, गुलदार आदि एक बार को पीछे हट जाते है ।
इन कुत्तों में बारे मे आगे किसी लेख में चर्चा करूँगी आज के लिए पुनः लौटते हैं तेंदुए की ओर 
तेंदुए,बाघ हिरण सब तरह से  अन्य पशु पक्षी सब हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं परंतु अब हम इन से दूर है ।
अब हमें याद आता है कौन कौन से जू में चिड़ियाघर में अभ्यारण्य में हम ने इन्हें देखा या कुछ घटनाये याद आती है जैसे  कैसे एक व्यक्ति अभ्यारण्य में शेरो के बीच
कूद गया ।शेर ने कैसे गर्दन से पकड़ा और भीतर ले गया ।या कभी कभी  हमारे फोन तक वीडियो आते है कि इंसानो की बस्ती में आ गया तेंदुआ या शेर और सब लोग इधर उधर  भाग रहे हैं गोलियां चला रहे है ।जंगल और जंगल की कहानियां अभी भी हमें आकर्षित करती है अभी नेटफ्लिक्स पर अरण्यक नामक वीडियो शृंखला है जो नर भक्षी तेंदुए को ले कर सस्पेन्स फ़िल्म है ।उस मे भी काला तेंदुआ दिखाया गया एनिमेशन की मदद से ।अब यह सब जानवर  हैं तो सही पर हमारे बहुत आस पास नही है 




ट्विटर पर बहुत से अधिकारी है जो फारेस्ट सर्विस में हैं उन्हें फॉलो करती हूं  तो कुछ मजेदार जान कारी मिलती रहती है  क्योंकि वह सब उनके खुद के सच्चे अनुभव शेयर करते रहते हैं।
सुनीता धारीवाल 
Resource -
स्क्रीन शॉट यहां चिपका रही हूं 












   
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रविवार, 12 दिसंबर 2021

सोने के फूलों का मौसम#लदाऊदी उत्सव चण्डीगढ़




दोस्तो क्या आप जानते हैं कि सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारत में  सोने के फ़ूलो की बागबानी भी हुआ करती थी और वर्तमान समय में भी इनकी बागबानी होती है यह सवर्ण  पुष्प साल में एक ही बार नवम्बर से फरवरी तक पल्लवित होते हैं ।सोने के फूलों की खेती ..? अरे आप तो चौंक गए ..चौकिये मत ..बस   सुनिए हम आपको बताते हैं कि सेवंती यानी गुलदाऊदी के फूलों को  इंडियन क्रिस्स्थमम कहा जाता है क्रिस्थमम का अर्थ है सोने का फूल और इंडियन का मतलब भारतीय है ही ।तो यह हुआ सोने का फूल और आजकल भारत के खूबसूरत शहर चण्डीगढ़ की खूबसूरती को चटकीले रंगों के सेवंती फूलों ने चार चांद लगाये हुए हैं सेवंती यानी गुलदाऊदी के रंग बिरंगे बेहद  फूलों को निहारने के लिए आपको आना होगा सेक्टर 33 स्तिथ टेरेस गार्डन में जहां पर  गुलदाऊदी उत्सव अपने शबाब पर है और इस उत्सव आज अंतिम दिन है ।चंडीगढ़ नगर निगम द्वारा आयोजित तीन दिवसीय  गुलदाऊदी उत्सव का औपचारिक शुभारंभ  चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार धर्मपाल ने किया एडवाइजर अपनी पत्नी के साथ इस शो में पहुंचे थे। वहीं, नगर निगम कमिश्नर आनिंदिता मित्रा और अन्य अधिकारी भी मौजूद रहे।यह उत्सव शुक्रवार दस तारीख को शुरू हुआ और आज 12 को इसका समापन शाम को हो जाएगा ।आज हजारों लोग फूलों की इस मनोरम छटा को देखने पँहुच रहे हैं । चंडीगढ़ नगर निगम में काम करने वाले  100 से  ज्यादा  कुशल मालियों ने वर्ष भर मेहनत कर के  गुलदाऊदी की लगभग 269 किस्मो को विकसित किया है और प्रदर्शित किया है ।फूलों से बनी मनोरम आकृतियां और प्रदर्शनियां जन समूह को आकर्षित कर रही हैं ।चलिए अब हम आपको गोल्डन फ्लावर के बारे में विस्तार से बताएंगे।क्रिसथमम , गुलदाऊदी, सेवन्ती, शतपत्री ,गुलदावरी, अक्करकरम् , चामुन्ति , बागौर , गेन्दी चेवन्ती , शेवटी ,चन्द्रमुखी , नसरीन नाम से जाने वाले इस खूबसूरत सजावटी पुष्प को सर्दियों की रानी भी कहा जाता है यह ऐस्टरेसी (Asteraceae) कुल का पौधा है और इसकी मुख्यतः तीस प्रजातियां है और फूलों की  लगभग 400 से ज्यादा किस्में  उपलब्ध है ।यह फूल  पूर्वी एशिया और पूर्वोत्तर यूरोप के मूल निवासी हैं। अधिकांश प्रजातियां पूर्वी एशिया से निकलती हैं और विविधता का केंद्र चीन में है। अनगिनत बागवानी किस्में और किस्में मौजूद हैं।गुलदाउदी की खेती हजारों वर्ष पूर्व एशिया के भारत तथा चीन वाले भू-भाग से होते हुए इंग्लैंड, जापान, अमेरिका एवं विश्व के अन्य भागों में पहुंच गई है।भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में  सदियों  से गुलदाऊदी ने अपना स्थाई निवास बनाया हुआ है ।इसकी खूबसूरती ने दुनिया भर को आकर्षित किया है और अब अनेक देशों में इसकी बागबानी की जाती है।चलिए इस फूल से जुड़ी  एक  रोचक जानकारी दे दें आपको -क्या आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर एक फूल भी है? यह फूल है गुलदाउदी (chrysanthemum in hindi) का। आपको याद करवा दें कि वर्ष  2017 में भारत के  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने इस्रायल का दौरा किया और इस दौरान वे इज़राइल की प्रमुख फूलों की खेती करने वाले फार्म को देखने भी गए।वहां गुलदाऊदी की  तेजी से विकसित होने वाली नई किस्म  का नाम मोदी रखा गया ।देंजिगर  फार्म, मध्य इज़राइल में, यरूशलेम से लगभग 56 किमी दूर, मोशव मिश्मार हाशिवा में स्थित है  यहां पर 80,000 वर्ग मीटर के अत्याधुनिक ग्रीनहाउस हैं जो पौधों के प्रजनन में विशेषज्ञता रखते हैं। यहीं पर ही गुलदाऊदी की एक नई किस्म का नामकरण " मोदी " कर दिया  गया ।अब सम्भव है कि मोदी अन्य फूलों संग  के गुलदस्तों  में चहक महक रहे हों ।भई हम भारतीय तो चाहेंगे ही कि मोदी फूल का अंतरास्ट्रीय भाव  चढ़ा हुआ ही रहे ।फूलों का नामकरण यहीं नही रुकता चंडीगढ़ में तो महात्मा गांधी ,कस्तूरबा गांधी ,मिस इंडिया   ,नामक फूल भी खिलखिला कर  खिल मिल हुए जा रहे हैं  यह बड़े बड़े नाम सभी को अपनी ओर बुला रहे हैं खैर चलो आगे बढ़ते हैं आपको दिखाते है कुछ बेसिक किस्मो की जानकारी देते है ।सबसे पहले आती है इनकर्व्ड’, incurved यानी इसकी सारी पंखुड़ियां भीतर की ओर मुड़ी हुई हैं यह बड़ा सा फूल बड़ी सी गेंद की तरह दिखता है यह  एक पौधे पर एक ही फूल होता है। अलग अलग रंगों में यह फूल मिल जाता है दूसरा है इंटरमीडिएट जिस में फूल थोड़ा  आधा खुला हुआ और आधा अंदर की ओर  बंद होता है और यह गोल  आकार का होता है  अगला फूल है रिफ्लैक्स्ड फूल -इसकी पंखुड़ियां बाहर की ओर बिखरी होती है बड़ा बेखौफ सा बाहें पसार कर सभी का स्वागत करता यह फूल सभी को प्रिय लगता है एक और किस्म है जिसका नाम है  स्पून -इसे नजदीक से देखें तो इसकी पंखुड़ियां चम्मच के जैसी दिखती हैं लम्बी सी डंडी और फिर अंत मे कटोरी नुमा आकार की पत्तियां बिल्कुल चम्मच की भांति दिखाई पड़ती है और अगली किस्म का नाम है  स्पाइडर जो जाहिर है कि यह मकड़ी की तरह दिखती भी है  और अब देखते हैं ये हैं Pompom जिसे हम हिंदी में फुन्दे कहा जाता है जैसे हम धागों का एक छोटा सा गुच्छा बनाते है और कपड़ो पर लटकन की तरह इस्तेमाल करते हैं कुछ इसी तरह का दिखता है यह पोम्पोमये है बटन ।सच मे बटन के समान बहुत ही छोटे छोटे फूलों को देखना भी सुखकर लगता है  गुलदाऊदी के फूल अनेक ख़ूबसूरत चटख  रंगों में मिलते हैं ।लोग अक्सर अपने बागीचों में या गमलों में इसे लगाते हैं। सच बात तो यह है कि गुलदाउदी केवल शोभा बढ़ाने वाला फूल नहीं हैं बल्कि गुलदाउदी का इस्तेमाल औषधीय कार्यों के लिए भी किया जाता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गुलदाउदी का उपयोग कर आप अपने या किसी के भी स्वास्थ्य भी ठीक रख सकते हैं।अलग अलग बीमारियों में इसकी जड़ और फूल का उपयोग दवा के रूप में भी किया जाता है ।और चीन और अन्य देशों में फ्लेवर चाय की तरह भी इसका  इस्तेमाल किया जाता है गुलदाऊदी को फ्लोरिस्ट डेजी और हार्डी गार्डन मॉम के नाम से भी जाना जाता है। गुलाबी रंग के खूबसूरत फूल वाली यह किस्म घर की हवा से बेंजीन, फार्मेल्डिहाइड, ड्राइक्लोरोएथिलिन, जाइलिन और अमोनिया के प्रदूषण को करती है।नगर निगम के बागबानी विभाग के अभियंता के पी सिंह ने बताया कि इस बार गुलदाऊदी उत्सव में इस बार 269 किस्में प्रदर्शित की गई है कॅरोना की तृतीय लहर की आशंका के चलते बाहर प्रदर्शनी एवं प्रतियोगिता के लिए बाहर से प्रतिभागियों को नियंत्रित किया गया है ।नगर निगम पिछले 32  वर्षों से इस उत्सव का सफलता पूर्ण आयोजन कर रहा है इस बार यह तेतीसवां आयोजन है ।पूरे भारत में  यह अकेला ही ऐसा उत्सव है जो गुलदाऊदी के प्रदर्शन और प्रचार प्रसार के  लिये ही हर साल मनाया  जाता है ।यह बात तो माननी पड़ेगी कि फूल मेलों के आयोजन से ही हम उन मालियों के अथक परिश्रम के बारे में जान पाते हैं जो वर्ष भर इसकी तैयारी करते हैं और जनता के सामने फूलों से बनी अनुपम कृतियाँ प्रदर्शित करते प हैं ।हम उन सब मालियों को सलाम करते है जो  कुछ दिन के  फूल देखने के लिए वर्ष भर मेहनत करते हैं  वे दिल से इन सोने के फूलों की देखभाल करते है हम दिल से उन्हें शुभकामनाएं देते हैं  सुनीता धारीवाल 


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गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

जब जिंदगी झटके दे तो क्या करें

जब जिंदगी में जोर का झटका जोर से ही लगे -अचानक आप के पैरों तले बिछा कार्पेट ..बिछाने वाला ही निकाल ले ...और आप औंधे मुंह गिर पड़े ..तो क्या होता है ..जिंदगी यही होती है जिंदगी रूमानी नही होती ..यह साहस से कठिन चोटियों पर चढ़ने जैसी है ..यह थकाती है रुलाती है हंसाती है .. फौज के किसी मोर्चे की तरह है ..सब अपने अपने साधनों से लैस डटे हुए है और लड़ रहे हैं।दुश्मन का हमला अप्रत्याशित है किधर से होगा कुछ नही पता ..बावजूद सब तैयारी के अचानक हमले होते रहते है ..जिंदगी ऐसी ही है ..यह सच का सामना जैसी है 

सभी के जीवन मे ऐसा होता है मेरे जीवन मे अनेको बार हुआ ।मैं फिर से कपड़े झाड़ कर खड़ी हुई जूती पहनी ली ।
हर बार कुछ न कुछ अप्रत्याशित होता है जीवन मे जब हम ने सोचा नही होता ।
जैसे हम कोई काम करते हैं कोई परियोजना शुरू करते हैं तो हम उस पर अच्छे से रिसर्च करते हैं और उसकी मुश्किलों और सफलता का दृश्य भी देख लेते हैं तो दिमागी रूप से तैयार होते हैं प्लान ABC करते हैं जब व्यापार या उद्यम जैसी बात होती है ।परंतु इन सब के बीच अचानक जिस व्यक्ति पर सारा दारोमदार था वह दुनिया छोड़ जाए ।आपके घर परिवार में वही दुनिया छोड़ दे जिसके लिए आप वह सब कर कर रहे होते हैं ।ऐसे और भी कई वाकये होते हैं ।एक ही समय मे आर्थिक सामाजिक भावनात्मक परिवारिक झटके लग जाते है चारो तरफ से भी हम घिर जाते है और सामने बड़ा शून्य दिखता है मनोबल घरती पर ।काम करने या जीने का भी कोई कारण नही बचता हो तब भी उठ खड़े ही होना होता है ।
मैंने इन बातों पर ध्यान दिया ..
1
जिंदगी मेरी है और यह सब जो हो रहा है वह अनुभव हैं जो मुझे औरों से ज्यादा  सशक्त बना रहे हैं ।क्योंकि उनके पास जूझने का अवसर आया ही नही 

2 
कुछ भी न हासिल करते हुए तो मैंने हासिल किया वह अनुभव था और अनुभव करना  सब के बस का नही ।

3 कुछ भी अनाअपेक्षित घट
जाने पर मेरा दिमाग नुकसान को बस एक नजर देखता है ।और क्यों हुआ इस पर दिमाग लगाती ही नही अपने दिमाग को केंद्रित करती हूं कि यह ठीक कैसे होगा ।इस पर कैसे पार पाया जा सकता है ।

4 भावनात्मक छल कपट को मैंने यूँ सहन कर लिया कि इंसान अकेला आता है अकेला जाता यह सब तो जिंदगी की एक रसता  को खत्म करने आये थे ।कुछ वक्त जो अच्छा बीता उनके साथ उसे याद कर लिया  ।बुरे अनुभवों के फोल्डर को डंप में डाल दिया ।बार बार ब्रेन को कमांड दी कि ट्रैश को भी खाली ही रखना है उनको वापिस नही लाना है 

5 घोखा करने वाला पता नही किन परिस्थितियों वश ऐसा कर गया ।परंतु उस के अंतर्मन को ग्लानि होगी कभी न कभी ।मुझे नही ।मुझे इस ग्लानि का बोझ नही ढोना पड़ रहा है ।मुझे नुकसान हुआ है और पीड़ा का बीज उसके पास  है

6 कोई भी लॉजिक लगाओ खुद को समझाओ कि जिंदगी ऐसी ही होती है 

7 ध्यान प्राणायाम मेडिटेशन  पर  समय लगाने से अधिक स्वच्छ  हवा इनहेल करने से बुध्दि सही दिशा में काम करती है ।और नियंत्रण में आने लगते है इमोशन्स ।यह अति दुःख की घड़ी में किया गया मेरा व्यक्तिगत अभ्यास है जो 100 प्रतिशत कारगर है ।

8 गीता का प्रवचन सामने टांग लो ...जो तेरे पास नही है वह कभी तेरा था ही नही ..टाइप्स आते जाते नजर पडेगी सही रहता है 

मेरे जीवन मे कितने ही  प्रसंग है और हर बार नया है और हर नये तरह के हानि अनुभव से निकलने का रास्ते भी अलग थे ।

हर वाकये की एक लंबी पोस्ट बनेगी सो कट शार्ट यही है ।जब जिंदगी में कुछ भी ऐसा हो जाये तो सोचना यही होता है निकला कैसे जाए दोबारा खड़े कैसे हों ।
गिर जाए तो उसी जगह लेट जाना नही होता उठ कर  घिसट कर चलना फिर लड़खड़ाना होता है और  तब कोई न कोई जरूर आता है कि देखो कैसे लड़खड़ा रहा है पर देख आगे रहा उसको कहीं पंहुचना है तो कोई आ कर कहता है चलो कुछ दूर मेरा कंधा पर अपना एक हाथ रख लो ।और हम ठीक भी हो जाते है ।

अपयश भी आता है जिंदगी में एक  झूटी खबर जिंदगी बदल देती है ऐसी  खबर फ्रंट पेज पर कई कालम घेरती है  पर और उसका कोरिजेंडेम लास्ट पेज पर दो लाइन का होता है ।उसको कोई नही देखता ।आप कॉरपोरेट वर्ल्ड से लड़ नही सकते ।उनको सच का भान होता है तो वे खंडन छाप देते है ।उन दो लाइनों को हम उतनी दुनिया तक कभी नही ले जा पाते जितनी फ्रंट पेज की खबर ने असर किया था ।ऐसे समय मे आपको सिर उठा कर के खड़े रहना होता है ।लोगों से भागना नही होता सामना करना होता है 
हार का सम्मान करना होता है क्योंकि वह भी कर्म करने  के कारण  आई है कहीं न कहीं चूक तो हम से ही हुई है ।
बस जिंदगी के प्रति उत्साह बनाये रखना है ।अपनी जिंदगी को खुद के बाहर से देखना है  और हंसना है ।और कुछ देर रोया फिर मुहँ धोया चल पड़ो बस
Sd
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मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

बेटियां और हत्याएं @हॉनर किलिंग #honor killing

जान से मार देंगे ..काट कर टुकड़े टुकड़े कर जमीन में गाड़ देंगे किसी को पता भी नही चलेगा इस दुनिया मे तुम थी भी या नही । गिनती कर ले चाचे ताऊ कितने है कितना बड़ा कुनबा है जरा सी ऊंच नीच की तो कोई लिहाज नही किया जाएगा ।मुझे लगता है जैसे मुझे कही गई यह बात हर उस लड़की से कही गई जो किशोर आयु में कदम रख रही होगी । वह जो अभी ढंग से  जान भी नही पाई है क्या समाज है इस समाज मे वह कौन है वह तो सिर्फ शारीरिक मानसिक बदलावों के प्रति जिज्ञासु है खुद पर मुग्ध हो रही है या कभी चिंतित सी अपनी दुनिया मे खोई है मां की रखी सिंगार दानी पर नजर है शीशे पर नजर है काजल बिंदी रंग बिरगे कपड़े उसे आकर्षित करते हैं और कभी कभी हैरान हो कर किसी किशोर को देखती है तो  उसकी नजर से सकपका जाती है ।इसे बड़ी आयु की लंपटता भरी निगाहे तीर की तरह चुभती है पर उसे पता नही चलता उस के शरीर मे ऐसा क्या है जिसे घूरा जा रहा है वह विचलित है मिले जुले अच्छे और असहज करने वाले अनुभव हो रहे होते हैं और इसी बीच माँ चोटी पकड़ उसे खींच कर सामने बैठा कर कहती है  संभल कर रह ..सुन ले अगर ऊंच नीच हो गई तो ..कितने टुकड़े होंगे गिने नही जाएंगे और आंगन में गड़ी मिलेगी ।मां का इतना कठोर रुप बस इसी 13 -14 बरस में पहली बार देखती हैं लड़कियां फिर माँ की नजरों का पहरा और हर पल घूरती निगाहों की कैद बड़ी असहनीय लगती है ।लोगो की घूरती निगाहों से बचाने के प्रयास में लगी माँ कैसे बदल जाती है और किसी थानेदार सी सुनाई देने लगती है ।जब सब सही चले परिवार के हिसाब से तो मां की बड़ाई होती है लड़कियों को अच्छे से पाला बड़ा किया समझदार बनाया आज्ञाकारी बनाया ।उस मां को सम्मान मिलता है ।इसके विपरीत कोई कदम हुआ तो सब से पहले माँ ही कटघरे में खड़ी जी जाती है ।समझा ले आपणी नै ..तेरी छोरी ..फिर सब सम्बोधन बदल जाते है घर के पुरुष सामने नही आते यह मोर्चा दिया जाता है घर महिलाओं को ही की लड़की को कंट्रोल करें । घर मे लड़की को कैद कर लिया जाता है उसके बाहर निकलने की मनाही है साम दाम दंड भेद की आजमाइश होती है सब तरह का इमोशनल अत्याचार होने के बाद यह अत्याचार  शरीरिक हिंसा से आगे बढ़ता हुआ इतनी कठोरता और कटुता में बदलता है कि उस माँ दादी चाची ताई लगभग सब से नफरत होने लगती है कि कैसी मायें हैं ।इस पर भी लड़की न माने  घर वालों को चकमा दे कर फिर उसी प्रेमी से मिले अगला कदम होता है कि इसे इस शहर से दूर किसी रिश्तेदार नाना मामा बुआ किसी के भी  घर भेज दो फिर वहीं उसका रिश्ता तय कर शादी कर दो ।इस सब मे होता अक्सर यूँ ही है कि लड़कियां पहले दूसरे चरण में ही पिघल जाती है और  उनके अनुसार काबू में आ जाती हैं और ब्याह दी जाती हैं ।कभी कभी लड़की नही मान रही होती है पर उसके बारे में हल यही सोचा जाता है कि जल्दी से किसी से भी ब्याह कर दो जो भी जल्दी और आसानी से मिले उसे ढूंढा जाता है और जुबान दे दी जाती है कि लड़की आपकी हुई हाँ भर ली गई है ।अब यही जुबान रखने के लिए भरसक प्रयत्न होंगे ।जिस में पूरा परिवार शामिल होता है । अक्सर लड़का ढूंढने ,देखने घर के बड़े पुरुष ही जाते है और स्वयं ही हाँ कर के भी आ जाते थे ।बाकी परिवार को माँ को तो यही  पता चलता कि हाँ कर दी है किसी को ।
और उस हाँ को अब हर हाल में निभाना होता है ।
इस हां ने बहुत बेमेल विवाह भी करवाये ।मुझे इस हाँ को ले कर एक घटना याद है कि मेरे पिता के सहपाठी जो हमारी रिश्तेदारी में थे वे अपनी बहन का रिश्ता  करने गए लड़का देखा और हाँ कर दी ।कुछ दिनों में ही पता चला कि लड़के के अपनी विधवा  भाभी के साथ सम्बन्ध है और वह अपनी भाभी से ही विवाह करना चाहता है ।इसलिए रिश्ता तोड़ देना चाहिए ।परंतु वे चाचा जी माने ही नही कि मैं खुद  हां कर के आया हूँ   अपने मुंह से ना नही करेंगे ।बाकी जो होगा वो लड़की का भाग्य होगा ।एन वक्त पर बारात आई हमारी वह बुआ जयमाला के लिए माला डालने ही वाली थी कि विधवा भाभी ने माला छीन कर  दूल्हे के गले मे डाल दी ।तब भी विवाह नही रुका।बोला नही फेरे तो होंगे ही ।फेरे भी हो गए ।वह बुआ ससुराल चली गई ।ससुराल में दूल्हे ने बुआ की तरफ देखा तक नही ।वह अपनी भाभी संग सोया ।भाभी दूल्हे के पास और दुल्हन को एक कोठड़ी दी गई जिस में एक खाट थी और उसकी पेटी बुआ जब भी आती बहुत रोती ।पर उसे हर बार कुछ दिनों में ससुराल पंहुचाया जाता ।बुआ ने इसे अपनी नियति मान लिया ।जो ब्याहता थी वह विधवा की तरह रही आजीवन और जो विधवा थी वह ब्याहता की तरह रही ।उसके बच्चे हुए ।बुआ ने उस कोठड़ी में भजन कर के सारी उम्र काट दी ।वह बांदी की तरह बच्चे पालती रही घर संवारती रही ।अपने भाई की एक हाँ के कारण ऐसा जीवन जीने पर अभिशप्त हुई ।पुरुष इतने जिद्दी भी हुआ करते थे जिस की जिद सारे परिवार को माननी पड़ती थी यह वे पुरूष थे जो घर के मुखिया थे ।जिनकी बात मोडनी नही होती थी किसी को भी ।
ऐसे अनुभवों की किस्सों  की भरमार मिलेगी ।जो आज की पीढ़ी की लड़कियों को असम्भव लगेगी ।
यह  किस्सा तो एक उदाहरण था कि पालक  पुरषो की  "हाँ "कितनी गंभीर होती समाज मे  । और ना करने वाली लड़कियों की नियति तो मौत तक भी पँहुची है ।चलो लौट आते है  हॉनर किलिंग विषय पर  ही -

अभी इसी रविवार को घटी  ताजा घटना का जरा जिक्र कर  लेते है औरंगाबाद की  वैजापुर तहसील में एक युवक ने मां के साथ मिलकर अपनी गर्भवती बहन का सिर धड़ से अलग कर दिया। वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी हथियार लेकर पुलिस स्टेशन पहुंचा और सरेंडर कर दिया। पुलिस ने बयान के बाद उसकी मां को भी गिरफ्तार कर लिया है। मां और बेटा दोनों बहन के प्रेम विवाह करने से नाराज थे।

घटना रविवार शाम को लाड़गांव शिवार गांव में हुई। पुलिस के मुताबिक, आरोपी युवक का नाम संकेत संजय मोटे (18) और महिला का नाम शोभा (40) है। दोनों ने मिलकर 19 साल की कीर्ति अविनाश थोरे की धारदार हथियार से हत्या की है। संकेत बहन से इतना नाराज था कि उसने बहन को जान से मारने के बाद उसका सिर धड़ से अलग किया। यही नहीं, वारदात के बाद भाई हाथ में खून से सना बहन का सिर थामे घर के बाहर आया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा कि वह खत्म हो चुकी है लाड़गांव शिवार में 302 बस्ती में रहने वाले संजय थोरे के बेटे अविनाश ने कीर्ति के साथ घर से भागकर आलंदी में प्रेम विवाह किया था। कोर्ट मैरिज कर दोनों खेत बस्ती गोयगांव में रहने लगे थ जिस से मां और भाई नाराज थे  दोनो में मिल कर विवाहिता लड़की का कत्ल कर दिया भाई ने गला काट कर गर्दन अलग की और मुंडी पकड़ कर बाहर आ गया ।इस दौरान मां ने टांगे पकड़ी रखी लड़की की ।भाई ने अपराध स्वीकार कर लिया सेल्फी भी ली कटी हुई गर्दन के साथ दोस्तों को भेजी  फिर गिरफ्तार हो गए ।

सोनीपत के गन्नौर में 16 वर्षीय लड़की को परिजनों ने जहर दे कर मार डाला यह घटना 30 अक्टूवर की है ।

पंजाब में अबोहर के गांव सांपा वाली में 17 अक्टूबर को लड़के और लड़की की हत्या कर चौक में डाल दिया 6 घण्टे तक लाश पड़ी रही ।पुलिस ने संज्ञान लिया और हॉनर किलिंग का मामला बताया 

इसी वर्ष 29 जुलाई की घटना है हरियाणा के सोनीपत जिले के मलिकपुर गांव की 18 वर्षीय कनिका की हत्या उसके पिता और भाई द्वारा कर दी जाती है पिता ने उसकी ही शाल से गला घोंट कर मार दिया और शव को गंगा  में बहा दिया । मामला कुछ इस प्रकार था कि कनिका नामक इस लड़की ने पड़ोस में रहने वाले उसकी पिता की आयु के एक व्यक्ति के साथ प्रेम संबंध स्थापित हो गए । 2020 में वह दोनो घर से भागे और बाहर मेरठ जा कर शादी कर ली और घर लौट आई ।माता पिता के साथ रहने लगी ।लड़की ने कुछ समय बाद बताया कि उस ने शादी कर ली है और वह अब पति के साथ रहना चाहती है  माता पिता को दुख तो पंहुचा परंतु कोई प्रतिक्रिया भी नही की ।लड़की पति के साथ रहने लगी फिर जुलाई 2021 में लड़की के पति में अपनी पत्नी के लापता होने की सूचना दी और रिपोर्ट लिखवाई । इसी बीच लड़की का वीडियो सोशल मीडिया में आ गया कि मुझे मेरे माता पिता ने बुलाया है और मैं जा रही हूं और अगर मेरी हत्या हो जाती है तो उसका जिम्मेदार मेरा पिता होगा और फिर  वही हुआ लड़की की हत्या कर दी गई।  पुलिस पूछताछ में पिता ने कबूल कर लिया कि मैंने लड़की को मार दिया ।उन दिनों मै सोनीपत में थी ।जब यह घटना हुई तो मैने कुछ स्थानीय  लोगों से बात इस बाबत बात की तो उनका कहना था कि आप को नही पता दीदी यह तो होना ही था लड़की ने बाप की उम्र के बाप के दोस्त के साथ भाग कर शादी कर ली थी ।बताओ कौन बरदाश्त कर लेगा इतनी बदनामी ।अपनी थी मार ली ।दूसरे का तो नही मारा।
इन दोनों मामलों में हत्या शादी के तुरंत बाद नही की गई बल्कि कुछ वक्त बीत जाने के बाद हुई ।
इस विषय पर यूँ तो एक किताब लिखी जा सकती है परंतु मैं सिर्फ यहां तक आपके चिंतन को ले जाना चाहती हूं कि हम सोचें किस तरह का सामाजिक दबाव होता होगा जिस को सहन कर पाने की क्षमता माता पिता में नही रह पाती ।सामाजिक लज्जा को फख्र  में परिवर्तित किये जाने के  परिजन हत्या कर देते  हैं । ऐसी हत्या को समाज ही  महिमा मंडित करता है ।उसे इज्जतदार बताया जाता है कि लड़की ने ऐसा कर के जो बेइज्जत किया था परिवार को तो वह प्रतिष्ठा लौट आई है ।कि इज्जत वाले थे इसलिए ठीक काम कर दिया ।जिनकी लड़की भाग जाएं घर से वो तो समाज मे मुंह दिखाने लायक नही ।जिसके ताने उन्हे प्रत्यक्ष या परोक्ष में  मिला भी करते हैं ।उन तानों का वजन इतना है कि उसके सामने एक दो जानें तो हल्की पड़ती है ।
इस से मुझे पंजाब का एक केस आया जिस में लड़की ने घर छोड़ा और  अपनी पसंद से शादी कर ली अपना घर बसा लिया । लगभग डेढ़ या  दो साल बाद लड़की का भाई और मां बाप लड़की से मिलने की इच्छा प्रकट करते हैं उसे बताया जाता है कि  उन्होंने माफ कर दिया है ।लड़की अपना पता बताती है और भाई आता है और  का कत्ल कर देता है  ।भाई बयान देता है कि इस ने शादी कर के खुद को तो सुखी कर लिया लेकिन हमारी जिंदगी नरक हो गई ।साल भर से लोगों से ताने उलाहने सुन कर वह गांव में रहने लायक नही रहे थे ।हमारा खाना पीना सोना भी दूभर हो गया था हम हर रोज लज्जित हो रहे थे ।हमारे पास तानों का जवाब नही था मैंने अब जड़ ही खत्म कर दी ।अब हमें कोई बेशर्म तो नही कहेगा ।
बहुत  से संभ्रात परिवार बड़े जमींदार घरों में लड़कियों की हत्या बड़े चुपचाप ढंग से बिना शोर मचाये की जाती है जिस में या तो जहर दे दिया जाता है या गला दबा कर या कभी तेजधार से और बाहर समाज  लड़की का हार्ट अटैक ,या कोई बीमारी या फिर सिर की नस फटने जैसा कारण बता दिया जाता है ।सदियों से ही   जवान लड़कियों को मर जाना शंका को जन्म देता है ।अक्सर किसी जवान लड़की की मौत हो जाने पर आज भी   लोग सोचते भी यही लड़की गर्भ से होगी जरूर। जिसे छिपाने के लिए मार दिया गया है ।क्योंकि बरसो से ऐसे ही तो ठिकाने लगाया जाता है उन लड़कियों को जो किसी गरीब मजदूर या ,नीची जाति के लड़के संग प्रेम में पड़ जाती है उन्हें भी ऐसे ही मारा जाता रहा है ।और ऐसे भी कई मौके हुए जहां घर वालों में लड़की को किसी के साथ आपत्तिजनक हालात में साक्षात देख लिया तो आहत परिजनों ने तुरंत  गुस्से के उस आवेश में ही काम खत्म कर दिया । घराने दार बड़े जमींदार इज्जतदार घरों की लड़कियों का तो  समाज ने यही इलाज किया है जब बड़े रुतबे वाले यही कर रहे हैं तो निचले वाले भी तो यही अनुसरण करेंगे आखिर इज्जत तो उनकी भी है ।यहां बात सिर्फ बेटियों  की नही पत्नियों की भी है उनको भी इसी तरह से जान से हाथ घोने पड़े हैं।खेत मजदूर जिसे सिरी भी कहा जाता है जो दलित भी है उस के साथ लड़की को आपत्तिजनक देख लिया गया तो मौत देना निश्चित था इस से पहले कि वो घर से भाग जाएं या फिर गर्भ में कुछ ले आएं ।उनका निपटारा कर दिया ही जाना होता है जो आज भी है ही ।यहां बात सिर्फ हरियाणा की नही पंजाब उत्तर प्रदेश राजस्थान में  मामले ही मामले है यहां तक पाकिस्तान के पंजाब सूबे में तो एक वर्ष में 81 औरतो के कत्ल कर दिए गए ।भारत मे  देश भर से अलग अलग राज्यो से आने वाले  ऐसे मामले  लगभग समान  हैं गरीब लड़की का सम्पन्न से सम्बन्ध हो जाये तो आपत्ति नही क्योंकि यह तो हुआ ही करते हैं पर विवाह नही हुआ करते।इसे तो खेलने खाने के दिन में ऐसा करना तो सम्मान दिलवाता है  परंतु इसके बिल्कुल विपरीत अमीर लड़की का किसी गरीब से हो और गर्भ ठहर जाए तो  उसकी मौत निश्चित थी ।आज भी ऐसा होता है ।बचपन से हम यह किस्से सुनते आए हैं अपनी बड़ी बूढीयो के मुख से जो आपस मे बात करती थी पर हमें भगा देती थी । उस छोटी आयु में जिस बात के लिए रोका जाए तो उसकी दोगुनी जिज्ञासा होती थी यह तो जरूर सुनी जानी चाहिए ।छिप छुप कर कान लगा कर हम भी सुनते थे तो  थोड़ा बहुत तो  हमारे भी पल्ले पड़ता था तो डर लगता था रात को नींद नही आती थी ।गांव में अखबार तो होते नही थे ।बस बात ही करते थे लोग ।दबी जुबान से चर्चाएं होती रहती थी समाज मे ।
मार देना हत्या कर देना आसान लगता है समाज के ताने सुनने से तो सोचो कि तानों  का वजन कितना ज्यादा है।
अक्सर लोग जब ताना देते हैं तो यही कहते है कि इनकी लड़की भाग गई हमारी गई होती तो हम तो कत्ल कर देते ।हम तो फांसी पर लटका चुके होते ।ये कितने बेशर्म हैं इन पर कोई असर नही है ।
मजाक उपहास लज्जित करना यह सब तानों उलाहनों में शामिल होता है जो इतना भारी पड़ता है कि लोग हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं ।यह मनोविज्ञान का विषय है कि उलाहने लज्जित करने वाले वाक्य इंसान में कैसा प्रभाव पैदा करते है किस तरह का असर करते है कि वे हत्यारे हो जाते है ।हमारी लड़की ने भाग कर शादी की हम तो भुला सकते हैं पर समाज आप को प्रतिदिन याद करवाएगा ।अगली पीढ़ी तक को याद करवा दिए जाने की परंपरा रही है ।
अब इस बात पर मैं उस कबीलाई  समय की कल्पना कर सकती हूँ  जब लोग झुंडों  में कबीलों में रहते थे ।गुफाओं का रहना और शिकार का मासाहार और उन कबीलों में भी थी स्त्रियां जो कबीले वालों की मलकियत ही थी ।कबीले से बाहर औरत को लड़की को नही दिया जाता था ।स्त्रियां एक के बाद दूसरा तीसरा चौथा और 12 .13 .14 ..और अधिकतर स्त्रियां प्रसव काल मे ही मर जाती थी ।स्त्रियों की संख्या कम हो गई थी ।औरतो को चुराना ,भगा ले जाना ,औरतो के लिए लड़ना उन कबीलों में जारी था ।अगर कोई लड़की किसी अन्य कबीले वाले पुरुष के साथ चली गई तो उनकी मृत्य निश्चित थी ।लड़ कर वापिस ले आते है और यही मार काट मची कबीलों में भी ।बाद में तो समाज बहुत कुछ हुआ लड़ाईयो से बचने के समझौते में लड़कियां दी जाने लगी ।विवाह के लिए दी जाने लगी ।फिर बाकी व्यवस्थाएं  और प्रथाएं बनती गई ।
कबीले की मर्जी के खिलाफ चलने वाली  लड़कियों को मौत के घाट तो कबीले वाले भी उतार रहे थे ।वही आज भी है इस वर्तमान समय भी ताना वही है कि तुम कैसे सरदार ? लड़की निकल कैसे गई तुम्हारे नियंत्रण से ।
तुम तो अब सरदार कहलाने लायक नही बचे ।
यही सरदारी बचा रहे हैं जो सिर्फ सामाजिक  कल्पना है और यह कल्पना  पितृ सत्ता की देन है वह पितृ सत्ता का ही विधान है  ।जो मस्तिष्क में बैठ गया है ।
प्रसंशा कुछ देर असर करती है लज्जा लम्बे समय तक दिमाग से घर बनाये रखती है ।लज्जित किये जाने वाले शब्द बार बार गूंजते है एक समय मन की स्तिथि भीतर से यही हो जाती है शायद सभी इसी बारे में सोच विचार रहे हैं और सभी लोग ही लज्जित कर रहे है या उसकी चर्चा कर रहे हैं या उस प्रकरण की बात कर के हंस रहे हैं व्यंग्य कर रहे हैं।


 शेष अगली पोस्ट में 
अभी लेख अधूरा है ..आप की राय महत्वपूर्ण होगी 

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गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

न कुछ लिया न दिया

मुझे  उसका वक्त
 चाहिए था 
तब उसके पास
 धन था और तन था 
उसे मेरा मन 
चाहिये था 
मेरे पास तन था 
और वक्त  था 
इस तरह आजीवन 
किसी ने किसी से 
न कुछ लिया न दिया

सुनीता
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मैं कौन हूँ और क्यूँ लिखना है मुझे

मैं कौन हूँ और क्यूँ लिखती हूँ ?

मैं कौन हूँ और  क्यूँ  लिखती  हूँ ? कभी कानो में धीरे धीरे बात करना खुस्फुसाना और तुम्हे हँसाना कभी कान में जोर से चिल्...

सुनीता धारीवाल जांगिड

कानाबाती
मैं स्वभाव व प्रकृति से ही सामाजिक चिंतक हूँ ।हर सामाजिक घटना मुझे लिखने को प्रेरित करती है
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सुनीता धारीवाल . चित्र विंडो थीम. Blogger द्वारा संचालित.