शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

गजल

तुम्हें उस से मोहब्बत है तो हिम्मत क्यूँ नहीं करते 
किसी दिन उस के दर पे रक़्स-ए-वहशत क्यूँ नहीं करते 

इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से 
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते 

तुम्हारे दिल पे अपना नाम लिक्खा हम ने देखा है 
हमारी चीज़ फिर हम को इनायत क्यूँ नहीं करते 

मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने 
तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते 

बदन बैठा है कब से कासा-ए-उम्मीद की सूरत 
सो दे कर वस्ल की ख़ैरात रुख़्सत क्यूँ नहीं करते 

क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर 
क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते 

मैं अपने साथ जज़्बों की जमाअत ले के आया हूँ 
जब इतने मुक़तदी हैं तो इमामत क्यूँ नहीं करते 

तुम अपने होंठ आईने में देखो और फिर सोचो 
कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर क़नाअ'त क्यूँ नहीं करते 

बहुत नाराज़ है वो और उसे हम से शिकायत है 
कि इस नाराज़गी की भी शिकायत क्यूँ नहीं करते 

कभी अल्लाह-मियाँ पूछेंगे तब उन को बताएँगे 
किसी को क्यूँ बताएँ हम इबादत क्यूँ नहीं करते 

मुरत्तब कर लिया है कुल्लियात-ए-ज़ख़्म अगर अपना 
तो फिर 'एहसास-जी' इस की इशाअ'त क्यूँ नहीं करते 

फ़रहत एहसास

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