मैं घटा थी
भरी थी जल से
बरसने को आतुर
किसी प्यास पर
आह: मुक़्क़द्दर
समुंदर पर बरस बैठी
धीरे धीरे खारी हो रही हूं
बस कुछ बूंदे
कहीं बीच रुकी है
शायद कोई लम्हा
समुंदर की सीप
अपना ले मुझ को
गले अपने लगा ले मुझको
और मैं शायद मोती बन जाऊं
समुंदर की गिनी जाऊं
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