मंगलवार, 28 जनवरी 2020

जब मैं खुद के पास होती हूँ  
तब  मैं बहुत उदास होती हूँ 

तब शब्द घुमड़ने लगते है 
अक्षर भी उड़ने लगते है 

मन कागज़ होने लगता है
दिमाग की कलम सरकती है

दिल की हर परत दरकती है
 और कविता होने  लगती है

फिर बेबस  सी हो जाती हूं
और कलम उठाने भगती हूँ 

कागज़ फिर रंगने लगती  हूँ 
 ये उदासी  भंगने लगती हूँ 

फिर शब्द जो आने लगते है 
कितने जाने  पहचाने लगते है 

खींचती जाती हूँ विषम लकीरें सी 
 सबके मतलब  बनते जाते है

अभी लिख रही हु शेष भी शीघ्र ---sd

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