सही और गलत के परे --
एक अरसे बाद प्रेम कविता लिखी प्रस्तुत है -
उस पार हो आना दोस्तों एक बार
सही और गलत के परे भी है एक पुल
भावावेगो के शहतीरों पर बना है जो
साहस के खम्बों पर खड़ा है जो
उस पुल के नीचे से
प्रेम का लबालब दरिया
बहता है कुलांचे भरता
मादक शोख हवाएँ बहती है उस पर
नैसर्गिक है स्वाभाविक है रोमांचक है
जरा जा कर तो देखो
धड़कनों के बढ़ते ही
थरथराने लगता है वो पुल
पर टूटता नहीं
सर्वत्र काया जल
सब होगा उथल पुथल
पर किनारे लांघता नहीं
वहां संगीत है साँसों का
धड़कनों की ताल बेमिसाल है
सुनना जरूर मेरे दोस्तों
उस पुल के पल दुनिया भुला देने में माहिर है
अस्तित्व विहीन हो जाओगे
कुछ पल के लिए ही सही
बस आत्मा रह जाओगे
प्रेम की पराकाष्ठा में
मोक्ष सा पा जाओगे
समाहित होना नश्वर से हो कर
अध्यात्म रस पा जाओगे
चिर आनंद में ईश्वर कैसे है रहता
उस पल वही अनुभव पा जाओगे
मत देर करना मत सोचना मेरे दोस्तों
यदि दिखने लगे कोई ऐसा पुल
तुरंत चले जाना उस पर -सही गलत के परे
ध्यान रखना पुल को बनने से पहले काटना
दुनिआ की आदत में शुमार है
अन्यथा मेरी तरह कविता ही लिखने लग जाओगे
-- सुनीता धारीवाल
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