कुछ रास्ते कहीं नहीं पहुँचते
बस वह होते ज़रूर हैं
थोड़ी थोड़ी दूरी पर
रास्तों के किनारों पर
लिखी होती है चेतावनियां
धीरे चलो -
आगे तीखा मोड़ है
यह सफर आखिरी हो सकता है
घर चलिए
कोई आपका इंतज़ार कर रहा है
रास्ता फिसलन भरा है
ध्यान से आगे बढ़िए
पर फिर भी चलना ही होता है
सुनसान सड़क पर
भीतर का शोर दौड़ाता है
कहीं न पहुँचने के लिए भी
चलना ही होता है
मर जाने की हद से
फिर जीने की हद तक का रोमांच
फिर फिर ले जाता है
उन्ही रास्तों पर
जो कहीं नहीं पहुँचते -
बस रास्ते होते है
सांस से सांस तक
किलकारी से खामोश हो जाने तक
हम रेंगतें है दौड़ते है इन्ही रास्तों पर
ये कहीं नही जाते
हमे ले जाते है हमारी यात्रा पर
suneeta dhariwal
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
मंगलवार, 28 अगस्त 2018
कुछ रास्ते कहीं नही पंहुचते
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