बुधवार, 17 फ़रवरी 2016

लारन्या -कन्या रत्न हमारा

लारान्या 

इंसान का पवित्रतम रूप में
मेरे घर आई है लारा
उसमे प्रेम ही प्रेम भरा है
मेरा आँगन हरा भरा है
उसकी आँखे विस्मित करती
देखें है मुझे एकटक सी
प्रेम को पढ़ लूँ यह बतलाती
मुस्कानो से लकदक उसकी
तुतली तुतली हर भाषा
छम छम सी फुदक रही है
चिड़िया सी चहक रही है
सम्पूर्ण प्रेम समर्पण है उसकी
हर उसकी आलिंगन भाषा
वह परी किसी नभ् की है
जगमग जगमग करती कोई आशा
उसके शब्द सभी सुंदर हैं
है नयी नयी कोई भाषा
वह कोमल मस्त कली सी
सुगन्धित  सा कोई मदरसा
मैं भी सीख रही हूँ उस से
बस प्यार ही प्यार लुटाना
रिश्ते सब समझ रही है
पापा नाना और मामा
ईश्वर रूपा साक्षात  है
मनुष्य की पवित्रतम अवस्था
बच्चों में ढूंढी तो मिली है
रचना रब की रब जैसी
ये कन्या रत्न आई है
देने खुशिया चौतरफा
तुम ईश्वर की परिभासा
जब जब किलकारी गूंजी
मिली अनहद नाद की पूँजी
लारान्या तुम जान मेरी हो
मैं वारी वारी जाऊं सा

सुनिता धारीवाल 

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