धरती और औरत की क्या जात फिर भी "जाति है कि जाती नहीं"
हरियाणा में वर्तमान में जाति का तिल्लिस्म धीरे धीरे टूटने लगा है खासकर इन तीन वर्गों में पहले तो हैं अति सम्पन्न नव धनाड्य परिवार जो अपने बच्चो के रिश्तों के लिए बराबर के धन कुबेरों को किसी भी जाति में ढूढ़ रहे है. दुसरे उच्च आय उच्च पदों पर नियुक्त हुए युवक युवतियों के अभिभावक जो उन्ही के समान्तर पदों पर चयनित युवक युवतियों के संजोग किसी भी जाती में बैठा रहे है और तीसरे निम्न आय वर्ग के लोग या मध्यम वर्ग के लोग जिन्हें अपनी जाति में कोई रिश्ता नहीं मिल रहा है और यह कहीं से भी बिना जाती पूछे लड़की बयाह कर लाने में सफल हो रहे हैं .रिश्तो के लिए जाति संज्ञान का अनुपात 20 :55:25 का दिखाई पड़ रहा है.20 प्रतिशत जो जाति को दरकिनार कर रहें है 55 वह जो आज भी जाती से बाहर नहीं जाना चाहते और 25 प्रतिशत वह जिन्हें बहु चाहिए चाहे किसी भी जाती की हो ,बस अदद महिला हो जो संतान उत्पन्न कर सके .यह अनुपात मेरा व्यक्तिगत आंकलन है जो समाज में रहते हुए मैंने अनुभव किया है यह किसी शोध का परिणाम कतई नहीं है
धन कुबेरों और उच्च पदासीन अधिकतर लोगो को तो गावं में रहना ही नहीं हैं उन्होंने ने तो तो देश के बड़े शहरो में या विदेशों में ठिकाने
कर लिए है और गाँव में कभी कभी छुट्टी मनाने या धन प्रदर्शन करने आना होता है या
फिर अपनी जड़ो का मोह उन्हें कभी कभार खींच कर ले आता है. ऐसे ही उच्च पदासीन अधिकारी वर्ग भी
शहरो की ओर पलायन कर गया है पर यह जो तीसरा वर्ग है जिसे गाँव में ही रहना है
और जिसे शादी के लिए लडकिया उपलब्ध ही नहीं हो रही है
उसको तो उसी के स्तर पर समाधान खोजना है .आज समाज को गहराई से समझने की कोशिश करें
तो पाएंगे की आज भी हरियाणा का समाज कट्टरता से जाति वयवस्था को
प्रभावी बनाये रखे हुए है काम के आधार पर बनी जातियों ने चाहे अपने पुश्तैनी काम
धंधे बदल लिए है “पर जाति है कि जाती नहीं “यह लोगों के जहन में स्थायी घर बनाये
हुए है. सामजिक व्यवहार में समजाति का पक्ष लेना, जाती के लिए संगठित होना आज भी होता है. यहाँ सत्ता जाति की सीढिया चढ़ कर ही हासिल
होती रही हैं. समाज की मुख्य नीवं में जाति है. जाति हर ओर है गाँव में हर जाति की अलग अलग थयाही यानि सामुदायिक भवन है हर किसी
जाति की बारात उसी की जाति की थयाही में रुकती है. दरअसल समाज अपनी पुरानी मान्यताओं को अपने
पूर्वजो की दी हुई सीख को ज्ञान सम्पति मान कर उनकी रक्षा करता है और वह इन्ही
पुरातन सामजिक नियमो व् मान्यताओं से भावनात्मक रूप
से गहरे से जुड़ा है और इन्ही मान्यताओं की श्रधा से रक्षा करता है .अपने पुरातन सामजिक नियमो और मान्यताओं को तोडने का मतलब अपने पूर्वजो का अपमान करना माना जाता है
–जिस समाज में हर खुशी या गम में हर त्यौहार में श्राद्ध में पूर्वजो को याद किया
जाता हो और उनसे प्रार्थना की जाती हो कि हे पूर्वजो अपनी कृपा व् आशीर्वाद बनाये रखिये . तो कया वहां पूर्वजो द्वारा स्थापित नियमों को आसानी
से तोडा जा सकता है बिलकुल नहीं .समय अनुसार थोडा बहुत बदलाव होगा परन्तु मूल नहीं
बदलेगा कभी क्यूंकि जाने अनजाने हम सब भी उन मान्यताओं में विश्वास करते है जो पूर्वजों ने बनाये हैं .वर्तमान में हरियाणा का समाज तेजी से बदल रहा हैं और परम्पराएँ बदलने लगी हैं आज
सामजिक पुरातन मान्यताओं के कट्टर पंथी समर्थक घुटने टेक गए है जब बेटो के विवाह
के लिए लड़कियां ही नहीं मिल रही . केवल और केवल अपनी जाति में ही ब्याहने की जरूरत हवा होने लगी हैं .आज वंश चलाने की इच्छा को
पूरा करने के लिए आँखे मूँद कर किसी भी
प्रदेश की किसी भी आयु वर्ग की लड़की को धन के बदले प्रदेश में ले आने का चलन जोरो
पर हैं .लिंग अनुपात की बड़ी कमी के चलते समाज को यह उपाय करना पड़ रहा है .यूँ तो
हरियाणा में लड़कियों की संख्या सैंकड़ो सालो से कमतर ही रही है सामजिक कारणों से
इतर मैं मानती हूँ इसका कोई अनुवांशिक ,जैविक
कारण भी हो सकता है. खान पान ,मिटटी ,मौसम या पर्यावरण यहाँ पर मादाओं की उत्पति कम ही कर
पाया है. यह भी एक शोध का विषय है जिस दिशा में अभी कोई औपचारिक जांच या स्टडी
सामने नहीं आई है .
भारत की पहली जन्गणना से आज तक इस क्षेत्र में लड़कियों की संख्या कम
ही पाई गई है और शायद पहले भी इसी प्रकार से लड़कियों की पैदाइश किसी अनुवांशिक या
जैविक कारणों से कम हुई होगी या आज भी कम ही होती है . यहाँ यह जरूर कहना होगा कि पूर्व समय में कन्या शिशु
हत्या और आजकल कन्या भ्रूण हत्या का घृणित अपराध का होना भी लड़कियों की कम संख्या को कमतरी की भयानक स्तिथि तक पहुँचाने
में पूरा जिम्मेदार हैं .
जाहिर है लडकियां कम है तो विवाह के लिए उपलब्धता भी नहीं है देखिये समाज कितना विचित्र होता है अपनी आवश्यकता
अनुसार नए नियम बनाता भी है और पुराने तोड़ता भी है पर सिर्फ तब- जब स्तिथिया उसके नियंत्रण से बाहर हो
जाती हैं .ज्यादा समय नहीं हुआ है आज से केवल 10 या 15 साल पूर्व अपनी जाति से
बाहर शादी करने या करवाने वालो का बहिष्कार कर दिया जाता था .उनसे बोलचाल हुक्का
पानी बंद कर दिया जाता था .कितनी बेटियों को कितने नव युगलों को चुपके से मौत के घाट उतार
दिया गया. परिवारों व् जातियों के समूहों में स्थाई दुश्मनी हो गयी थी ,पर अब क्या ? जनाब आज स्तिथी ऐसी हुई कि समाज में परम्पराओं की दुहाई देने वाले ठेकेदारों को सांप सूंघ गया . बड़ी बड़ी पंचायतों में फरमान सुनाने वालो की बोलती बंद हो गई है जब बंगलादेश, केरल ,महाराष्ट्र ,उतर पूर्व असम, सिक्किम ,नेपाल भूटान ,हिमाचल, झारखंड प्रदेशों की लडकियां गावं में बहु बन कर ले आई जाने लगी .दस हजार से 50
हजार से एक लाख तक ,रंग रूप, कद,सेहत, इलाके अनुसार लड़कियों के मूल्य तय होने लगे
जिसकी जितनी आर्थिक क्षमता वह ले आये कहीं से भी .नहीं भूल सकती हूँ मैं आज का यह समय
जहाँ हरियाणा में लोग बाग़ एक भैंस की कीमत डेढ़ लाख चुकाने और लड़की बीस हजार में लाने में सफल हुए
हैं अब जब बस नहीं चल पाया तो मजबूरन कुछ गोत्र पंचायतों ने विवाह के पारम्परिक नियमों में जाति को
ढील दे दी है या अपनी रोक हटा ली है परन्तु सम गोत्र में शादी करने का विधान नहीं बदला है
बल्कि एकजुटता से भारतीय संविधान के
हिन्दू विवाह के अधिनियमों में इस विधान को शामिल कर इसे वैधानिक जद में लाने की
मांग जोर पकड़ने लगी है .जाहिर है समाज में जैसी स्थितियां उत्पन्न हुई उस से समजाति
में विवाह के विधान को बड़ा झटका लगा है और
कट्टरपंथी समाज समगोत्र में विवाह के नियम के टूटने को ले कर शंकित भी असुरक्षित भी है और इस विधान की रक्षा करने को कृत संकल्पित है. हाल ही में वर्ष 2013 के सितम्बर माह में रोहतक के गाँव गरनावाठी में समगोत्र में सम्बन्ध बनाने वाले युगल को लड़की के परिजनों ने सरे आम काट दिया गया और उनके शव
ट्रेक्टर ट्राली में रख कर सारे गावं में घुमाये और फिर गली में फैंक दिए यह एक
सामजिक तांडव था जहाँ सभी के लिए सबक ले लेने का और दबाव बनाने का प्रदर्शन था की कोई समगोत्र निकट सगे सम्बन्धियों में ऐसा करने न सोचे.यह हत्या अपराध
करने वालो के माथे कोई शिकन न थी क्यूंकि उन्होंने ऐसा कर सामाजिक विधान की रक्षा कर सम्मान कमाया था
,ऐसी अनेक घटनाये समय समय पर होती रही है.गोत्र का विधान आज भी अटल है पर अब समजातिय विवाह की
अनिवार्यता कुछ ढीली पड़ी है .सोचने की बात ये है कि जिन परिवारों को अपने बेटे के लिए कोई
रिश्ता नहीं मिल रहा वह अन्य प्रदेशों से तो खरीद फरोख्त के माध्यम से लड़कियों को
ला कर अपने घर की बहु बना रहे है परन्तु अपने
ही प्रदेश की निम्न व् दलित जाति की बहु लाने से पूरा कतराते है ,अभी भी यह
बात कतई गवारा नहीं की कोई दलित जाती की लड़की इस घर की बहु बने , जींद जिले के गाव
शाहपुर की 65 वर्षीया महिला धनपति देवी चार बेटो की माँ है और जो अब तक सभी कुवारें
थे दो की तो आयु निकल गयी है पर वह अपने
तीसरे अपने बेटे के लिए बिहार से बहु ले आई है और चौथा भी अभी कुवारा है मैं ऐसे परिवारों से मिलने खुद गाँव में गयी जब मैंने
पुछा की क्या तुम्हे इस बहु की जाति पता है तो धनपति का कहना था की सुना है यह बनिए की
है पर पक्का पता नहीं .मैंने सवाल किया की आप के तीन बेटे और हैं क्या आप इनकी
शादी किसी गरीब दलित कन्या से करेंगी तो तपाक से जवाब मिला कि- कभी नहीं मुझे जग
हंसाई नहीं करवानी हैं ,जब मैंने कहा कि आप जो बहु लाये हो वो क्या पता वो भी नीची
जात से ही हो तुम्हे क्या पता? तो धनपति का सीधा सरल जवाब था कि देखो बेटी आँखों देखि माखी
निगलना बहुत मुश्किल है दूर से चाहे जैसी भी हो किसी को नहीं पता न ही कोई उनसे
बरतेगा न जानेगा ,बस लड़की मिल गई है और
आते साल एक में पोता भी हो गया है सो मेरे तो मन की पूरी हो ही गई है –हमारा नाम
रह जायेगा पीढ़ी चल पड़ेगी .
ऐसे ही नरवाना के पास कारोदा गाव में केसरी भी पश्चिम बंगाल बहु ले से आई है वह अभी तो अभी बिलकुल नई नई आई है बस एक महीना ही हुआ है मैं भी पहुँच गयी उस
से मिलने .मैंने उस से बात की तो उसने बताया की उसे भाषा नहीं समझ नहीं आ रही ,उसे खाना
पसंद नहीं आ रहा ,वह कई बार भूखी रहती है क्यूंकि उसे रोटी नहीं भाती उनके यहाँ तो
मच्छी चावल बनता है ,और उसे सूट पहनने में और घूंघट करने में असुविधा हो रही है और
उसे अपने माई बाबा छोटे भाई बहिन याद आ रहें हैं और उसकी आँखों से टप टप आंसू झरने
लगे .मैं जानती हूँ उसके पास कोई चारा नहीं वह धीरे धीरे सब सीख जाएगी और यहाँ के रहन सहन की आदत डाल
लेगी .गाँव की बड़ी बुढ़ियां जो आज तक जाति में बयाहने की कट्टर अनुपालना करने की
ध्वज वाहक थी वह भी ज्ञान देती सुनाई दी
की बेटी धरती और औरत की क्या जात जो बोऔ वही उग जाता है ,कोख तो सब औरतो को दी है राम
ने- वंश की बेल तो बढ़ा ही देगी औरत चाहे कहीं से ले आओ . अगली पीढ़ी को कुछ न याद रहेगा कौन आई थी किसको कहाँ से लाये थे .दलित जाति में बेटा ब्याह लाने के सवाल पर उनका यही जवाब था अपने ही गाम गुआंड की बाल्मिकी -चमार की धानक- सिकलीगर की नट बाजीगर की छोरी तो
नहीं बिठाई जा सकती न अपने चूल्हे पर इसलिए दूर दराज ही ठीक है आंदे जांदे तो नहीं दिखेंगे इसके घरवाले .
काबिलेगौर है की पंजाब में ऐसी शुरुआत हो गयी है कि जिन परिवारों को विवाह के लिए लड़कियां नहीं मिल पाई है वह अब गरीब दलित परिवारों की खूबसूरत लड़कियां से विवाह कर घर लाने लगे है पंजाब के संगरूर जिले की सुनाम शहर के वरिष्ठ पत्रकार बलदेव शर्मा (जिन्होंने पंजाब में बहु पति परंपरा और लड़कियों की खरीद फरोख्त पर गहन सामजिक अध्ययन कर मीडिया में लिखा और राष्ट्रीय व् अन्तर राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींचने में भी वे कामयाब रहे हैं )को आग्रह कर पंजाब के कुछ गाँव में मैं खुद गयी और वहां की स्तिथि को समझा और पंजाब और हरियाणा में इसी विषय पर थोडा सा तुलनात्मक अध्ययन करने की कोशिश की .हालांकि पंजाब में खरीद फरोक्त के माध्यम से लड़कियों को ला कर पत्नी बना कर रखने का चलन काफी पुराना हैं पंजाब चूँकि पहले से ही संपन्न राज्य रहा है तो निसंदेह उनकी खरीदी की क्षमता भी ज्यादा रही है हरियाणा राज्य बनने से पहले इस भूमि पर भी शासकीय अनदेखी के कारण गरीबी पसरी हुई थी इसलिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश की गरीब परिवारों की महिलाएं पंजाब के कुवारों की पहुँच में रही .मुझे वहां सुनाम के पास ही के गावं में हरियाणा की अधेड़ आयु महिला कमला मिली जो बहु पति परम्परा का निर्वहन कर रही थी .उसके पीहर के परिवार वाले जींद जिले के एक गावं से सम्बंधित थे .जिसमे अब कोई नहीं बचा था उसके अनुसार उसके पिता की जमीन इलाज में बिक गयी थी लाचार माँ ने 12-13 साल की उम्र में उसे पंजाब के एक परिवार को सौंप दिया था , वह उसी परिवार में बड़ी हुई.उसकी सास ने ही उसे घर का हर काम सिखाया.आज वह कमला नाम बदल कर कर्मजीत कौर है और नित्य नियम गुरुद्वारा साहिब के सब नियम करती हैं ,मुझसे मिलने के बाद वह बेहद खुश थी चूँकि मैं हरियाणा से थी उसे कोई बहुत अपना सा लगा ,जाहिर सी बात है बातो बातों में उसका अतीत कुरेदा गया .उसे अपने परिवार व् गाँव से कोई शिकवा नहीं था पर उसे इस बात से जरुर उसकी हिचकी बन्ध गयी की उसके बच्चो की शादी में कोई भात ले कर आने वाला नहीं हैं और वह उस घड़ी बहुत उदास हो जाती है .उसकी बातों से मैं हरियाणा की गरीबी का अंदाजा लगा पाई जो मुझे बिलकुल भी एहसास नहीं था कि आज से महज 50-60 साल पहले तक भी हरियाणा ऐसा भी होता होगा.
चलिए लौटते हैं बात चली थी खरीद फरोख्त की तो पंजाब में यह चलन बीस पच्चीस वर्ष पहले ही जोर पकड़ गया था और ये आम सी बात लगने लगी थी कुछ घटनाएँ ऐसी हुई की खरीद कर लायी पत्नी जेवर और कीमती सामन ले कर रफुचक्कर होने लगी और दलालों ने भी कीमतें कुछ ज्यादा ही ऊँची कर दी और सरकार ने भी सख्ती दिखाई . बलदेव शर्मा जैसे जुझारू पत्रकारों द्वारा कुछ समय पहले जब इस वयवस्था की राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय रिपोर्टिंग होने लगी तो तत्कालीन सरकार की किरकिरी होने लगी ,सरकार पत्रकारों की रिपोर्टिंग को ठुकराने लगी और कानूनी चुनौती देने लगी और साथ ही सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग कर ऐसी सभी औरतो को जबरन सरकारी खर्चे पर उनके मूल निवास और गाँव में भेज दिया , आये दिन पुलिस की रेड और दबाव के चलते समाज में बाहर प्रदेशों से लायी जा रही औरतो के प्रति आकर्षण कम हुआ और लोगो ने अपने ही प्रदेश की दलित वर्ग की सुन्दर और पढ़ी लिखी लड़कियों को अपनाना शुरू कर दिया है वहां के स्थानीय जत्थेदार के अनुसार दलित वर्ग की कन्या ले कर आना ज्यादा सुरक्षित है बनिस्बत इसके कि दूर दराज की अनजानी लड़कियों या औरतो से जो कभी भी लूटपाट कर जाएँ या अपराध कर डालें .धीरे धीरे दलित कन्या समायोजन की नई व्यवस्था भी चलन में आ गयी है .जिस से हरियाणा अभी को दूर है अभी जल्दी से निम्न जाति कन्या अपनाना हरियाणा के समाज के अजेंडा में अभी नहीं हैं.बहुत से लोग गाँव में तो यह भी नहीं जानते कि लड़कियों को खरीद कर लाना मानव तस्करी है जो कानूनन अपराध है.उन्हें सिर्फ इतना ज्ञान है कि यह सुविधा लोगो के घर बसा रही है.तस्करी से आई हुई किसी लड़की का कोई परिजन यदि ढूंढते ढूंढते पुलिस को ले कर उस घर तक आ भी जाता है तो गाव वाले लठ्ठ उठा कर बैठ जाते है आओ देखते है कौन ले जाता है हमारी बहु को .यदि कोई लड़की पुलिस बल के हस्तक्षेप से वापिस भी गयी है तो कुछ समय बाद लौट आई है क्यूंकि मानव तस्करी के व्यापार में गर्भवती और विवाहित कन्या की तो कीमत बहुत गिर जाती है,और वह कहीं की भी नहीं रहती यहाँ सर ढकने को छत और रोटी तो समय से मिल ही जाती हैं
आज जो भी हो रहा है जिस प्रकार का भी सामजिक परिवर्तन हो रहा है उसके अच्छे और बुरे दोनों ही असर होंगे पर मैं एक सामजिक दृष्टा के नाते भांप रही हूँ और हरियाणा के भविष्य के समाज को देख पा रहीं हूँ और चिंतित हूँ जो समाज आज भी जातिवाद में आकंठ तक डूबा है उसी समाज में सामजिक स्तरीकरण की एक और सतह बनेगी जहाँ इन मोल लायी गयी औरतों के बच्चे होंगे जिन्हें बाकी मूल हरियाणवी बच्चो से अलग कर देखा जायेगा और अच्छे खासे कटाक्ष होंगे . खालिस हरियाणवी खून का अच्छा खासा प्रदर्शन होगा और उन बच्चों को उन युवाओ का सार्वजनिक परिहास होगा जैसे अबे ओ मोलकी के भैयन के या केरली के या कुछ भी कुछ भी जो उनकी माँ की मूल नस्ल से जोड़ कर पुकारा जायेगा . कुछ युवा घर परिवार गाँव से पलायन करेंगे कुछ संगठन करेंगे ,हरियाणा में बहुत से बच्चो की मातृभाषा मलयालम ,बिहारी ,कोंकणी या फिर असमिया या खासी होगी और पितृ भाषा हरियाणवी और स्कूलों में वे हिंदी अंग्रेजी पढेंगे .मुझे यह सोचने में बिलकुल अचरज नहीं कि या बच्चे कई भाषाओँ के जानकार होंगे .कैथल जिले में गूजर समुदाय बहुल बहुत बड़ा गावं है कयोड़क वहां जाते ही उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में पहुँच जाने का एहसास होता है वहां अधिकतर बहुएं उत्तर प्रदेश की है और उनके बच्चे छोरा छोहरी की जगह लौंडा लौंडी शब्दों का इस्तेमाल धडल्ले से करते है अपनी माँ के साथ बातचीत में और उनका आपस में बात करने का लहजा और शब्दावली बिलकुल उत्तर परदेश वाला है पर जब कोई बाहर से आता है तो वह युवक युवतियां चौकन्ने हो जाते हैं और स्थानीय कैथल वाले लहजे में बात करते हैं .मैं देख पा रही हूँ हरियाणा में कितने लहजे होंगे ,एक नए समाज का एक नए वर्ग का इंतज़ार करिए जो आजकल जन्म ले रहा है पालने में झूल रहा है .यह नवोदित वर्ग भी कई तरह की ऊँच नीच भेदभाव का साक्षी बनेगा .और असल व् मिलावट की नस्लों जैसी बातें होंगी ,जब जाति के नाम से संबोधन आज तक नहीं छूटे तो नए समय में नए संबोधन भी बनेंगे .
समाज में एक नई सतह बन जाने के हम साक्षी होंगे .
सुनीता धारीवाल जांगिड
०९८८८७४१३११
चलिए लौटते हैं बात चली थी खरीद फरोख्त की तो पंजाब में यह चलन बीस पच्चीस वर्ष पहले ही जोर पकड़ गया था और ये आम सी बात लगने लगी थी कुछ घटनाएँ ऐसी हुई की खरीद कर लायी पत्नी जेवर और कीमती सामन ले कर रफुचक्कर होने लगी और दलालों ने भी कीमतें कुछ ज्यादा ही ऊँची कर दी और सरकार ने भी सख्ती दिखाई . बलदेव शर्मा जैसे जुझारू पत्रकारों द्वारा कुछ समय पहले जब इस वयवस्था की राष्ट्रीय व् अंतरास्ट्रीय रिपोर्टिंग होने लगी तो तत्कालीन सरकार की किरकिरी होने लगी ,सरकार पत्रकारों की रिपोर्टिंग को ठुकराने लगी और कानूनी चुनौती देने लगी और साथ ही सरकार ने पुलिस बल का प्रयोग कर ऐसी सभी औरतो को जबरन सरकारी खर्चे पर उनके मूल निवास और गाँव में भेज दिया , आये दिन पुलिस की रेड और दबाव के चलते समाज में बाहर प्रदेशों से लायी जा रही औरतो के प्रति आकर्षण कम हुआ और लोगो ने अपने ही प्रदेश की दलित वर्ग की सुन्दर और पढ़ी लिखी लड़कियों को अपनाना शुरू कर दिया है वहां के स्थानीय जत्थेदार के अनुसार दलित वर्ग की कन्या ले कर आना ज्यादा सुरक्षित है बनिस्बत इसके कि दूर दराज की अनजानी लड़कियों या औरतो से जो कभी भी लूटपाट कर जाएँ या अपराध कर डालें .धीरे धीरे दलित कन्या समायोजन की नई व्यवस्था भी चलन में आ गयी है .जिस से हरियाणा अभी को दूर है अभी जल्दी से निम्न जाति कन्या अपनाना हरियाणा के समाज के अजेंडा में अभी नहीं हैं.बहुत से लोग गाँव में तो यह भी नहीं जानते कि लड़कियों को खरीद कर लाना मानव तस्करी है जो कानूनन अपराध है.उन्हें सिर्फ इतना ज्ञान है कि यह सुविधा लोगो के घर बसा रही है.तस्करी से आई हुई किसी लड़की का कोई परिजन यदि ढूंढते ढूंढते पुलिस को ले कर उस घर तक आ भी जाता है तो गाव वाले लठ्ठ उठा कर बैठ जाते है आओ देखते है कौन ले जाता है हमारी बहु को .यदि कोई लड़की पुलिस बल के हस्तक्षेप से वापिस भी गयी है तो कुछ समय बाद लौट आई है क्यूंकि मानव तस्करी के व्यापार में गर्भवती और विवाहित कन्या की तो कीमत बहुत गिर जाती है,और वह कहीं की भी नहीं रहती यहाँ सर ढकने को छत और रोटी तो समय से मिल ही जाती हैं
आज जो भी हो रहा है जिस प्रकार का भी सामजिक परिवर्तन हो रहा है उसके अच्छे और बुरे दोनों ही असर होंगे पर मैं एक सामजिक दृष्टा के नाते भांप रही हूँ और हरियाणा के भविष्य के समाज को देख पा रहीं हूँ और चिंतित हूँ जो समाज आज भी जातिवाद में आकंठ तक डूबा है उसी समाज में सामजिक स्तरीकरण की एक और सतह बनेगी जहाँ इन मोल लायी गयी औरतों के बच्चे होंगे जिन्हें बाकी मूल हरियाणवी बच्चो से अलग कर देखा जायेगा और अच्छे खासे कटाक्ष होंगे . खालिस हरियाणवी खून का अच्छा खासा प्रदर्शन होगा और उन बच्चों को उन युवाओ का सार्वजनिक परिहास होगा जैसे अबे ओ मोलकी के भैयन के या केरली के या कुछ भी कुछ भी जो उनकी माँ की मूल नस्ल से जोड़ कर पुकारा जायेगा . कुछ युवा घर परिवार गाँव से पलायन करेंगे कुछ संगठन करेंगे ,हरियाणा में बहुत से बच्चो की मातृभाषा मलयालम ,बिहारी ,कोंकणी या फिर असमिया या खासी होगी और पितृ भाषा हरियाणवी और स्कूलों में वे हिंदी अंग्रेजी पढेंगे .मुझे यह सोचने में बिलकुल अचरज नहीं कि या बच्चे कई भाषाओँ के जानकार होंगे .कैथल जिले में गूजर समुदाय बहुल बहुत बड़ा गावं है कयोड़क वहां जाते ही उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में पहुँच जाने का एहसास होता है वहां अधिकतर बहुएं उत्तर प्रदेश की है और उनके बच्चे छोरा छोहरी की जगह लौंडा लौंडी शब्दों का इस्तेमाल धडल्ले से करते है अपनी माँ के साथ बातचीत में और उनका आपस में बात करने का लहजा और शब्दावली बिलकुल उत्तर परदेश वाला है पर जब कोई बाहर से आता है तो वह युवक युवतियां चौकन्ने हो जाते हैं और स्थानीय कैथल वाले लहजे में बात करते हैं .मैं देख पा रही हूँ हरियाणा में कितने लहजे होंगे ,एक नए समाज का एक नए वर्ग का इंतज़ार करिए जो आजकल जन्म ले रहा है पालने में झूल रहा है .यह नवोदित वर्ग भी कई तरह की ऊँच नीच भेदभाव का साक्षी बनेगा .और असल व् मिलावट की नस्लों जैसी बातें होंगी ,जब जाति के नाम से संबोधन आज तक नहीं छूटे तो नए समय में नए संबोधन भी बनेंगे .
समाज में एक नई सतह बन जाने के हम साक्षी होंगे .
सुनीता धारीवाल जांगिड
०९८८८७४१३११
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें