जिन रातों की नींन्द गवाई उनका हिसाब बाकी है
तेरे हाथों दवा हकीमी मेरा इलाज बाकी है
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
बुधवार, 22 नवंबर 2017
शुक्रवार, 3 नवंबर 2017
बेकरारी
आखों से खुद की बिछड़ने नही देता
नजदीक आता है हद से गुजरने नही देता
दूर से जताता है बेकरारी खुद की
ख्वाहिशों के पंख मेरे उगने नही देता
तुम्हारी खामोशी मुझे अच्छी नही लगती हजारो ख्वाब मरते है जब तुम खामोश होते हो
तुम्हारी खामोशी मुझे अच्छी नही लगती
हजारो ख्वाब मरते है जब तुम खामोश होते हो
रेत
अक्सर बिना कसूर
मेरे हाथों से
रेत की तरह फिसले
कई अवसर
कई मित्र कई रिश्ते
और मैं हक्की बक्की
देखती रह गई
खाली हाथ
खुद को दो थप्पड़ मार लिए
और उन्ही हाथो से ताली बजा ली खुद पर
हर बार ठगे जाने की
बारी मेरी आती है
जिंदगी यूँ मेरा साथ निभाती है
तेरे सिरहाने नींद थी मेरे सिरहाने ख़्वाब
तेरे सिरहाने नींद थी
मेरे सिरहाने ख़्वाब
तेरा दिल दुनियादारी
मेरा दिल जज्बात
मुझ में मैं कहाँ बची हूँ तेरे बिन भी कहाँ जँची हूँ
मुझ में मैं कहाँ बची हूँ
तेरे बिन भी कहाँ जँची हूँ
कुछ सफर ऐसे होते है
तुम पास बैठे भी दूर
रहते हो मुझ से कितना
लेकिन मैं जानती हूँ
हर दिन पास आ रहे हो तुम
बस एक दिन होश में न रहना तुम
फिर चल देंगे उन रास्तो पर
जो न कहीं जाते है न पहुँचते है
कुछ सफर ऐसे भी होते है
भूगोल
क्या किया अब तक
बस भूगोल ही जांचा
औरत का
नाप ली एक ही झटके में
एक ही नज़र से
सब आगे पीछे ऊंचाई गहराई
माददा नहीं है तुम्हारा
उसके दिल और दिमाग की
गहराईयों का उत्खनन करने का
तभी तो तुम्हारा इतिहास अधूरा है
और मेरा सब ज्ञान पूरा है
औरत न जान पाओगे
गर भूगोल में घूमने जाओगे
सुनीता धारीवाल
चले आये क्यों
इतना तो जानती हूँ मैं
मुसाफिर हो
कहाँ रुक पाओगे तुम
यूँ ही किसी मोड़ पर
फिर मिल जाओगे तुम
ठोकरों के हवालों से
भला क्या डर जते हम
इतने भर से ही
कहाँ डगमगाते हम
हम तो प्यार में भी जख्मी
सरे आम हुए है
जब जिस संग चाहां
वहां बदनाम हुए है
इतने कमजोर नहीं कि
टूटने के खौफ से चटक जाते
हम तो चूर चूर हो
कर भी बन आये है
जाना ही था तो
चले आये क्यूँ
पाना न था तो
खो आये क्यूँ
खुद से डरते हो
या खुदाई से डरते हो
अँधेरे से डरे हो या
परछाई से डरते हो
हम कुचले भी है
छलनी छलनी हम भी है
ये अलग बात है
तेरे लायक हम नहीं है
बुधवार, 1 नवंबर 2017
मुलाकात
सच मे आप से मुलाकात
जिंदगी से मुलाकात होती है
आपका प्यार से देखना मुझे
सबसे बड़ी सौगात होती है
मैं कहीं भी रहूं कही चल दूँ
बस तुम्हारी बात होती है
तुम्हारे संग गुजरे हर पल
रूमानी आस होती है
तुम्हे पा कर भी बिरहा की
तड़प और प्यास होती है
तू जिंदगी सा लगता है
ए दोस्त
तू मुझे जिंदगी सा लगता है
तेरे मन का है नूर
जो मेरे चेहरे पर झलकता है
तेरी बातों में
तेरे जीवन का तप झलकता है
तेरी नजर ए इनायत से
रोम रोम मेरा महकता है
तेरी आँखों मे सच्चाई
तेरा ईमान चमकता है
इश्किया रूह के कारण
तेरा चेहरा दमकता है
मुझ से कोई पूछ कर देखे
तू मुझको कितना जंचता है
मैं तेरी हो नही सकती
तू मेरा हो तो सकता है
तू है तो मन मे मेरे
असंख्य दीपों का उजाला है
शक्ति मेरे भीतर है
प्रेम मेरी ज्वाला है
कोई पूछे कैसे मैने
अपना यह दिल सम्भाला है