हम अक्षर से शब्द बनाती रही @
वो आँखों से ग़ज़ल कह गए और शब्दों से मुकर भी गए
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शनिवार, 29 अप्रैल 2017
हम अक्षर से शब्द बनाती रही @ वो आँखों से ग़ज़ल कह गए और शब्दों से मुकर भी गए
बुधवार, 26 अप्रैल 2017
मुझे क्यों जाना है
जिसे जरूरत का मेरी
कभी कोई अंदाजा नही
उसी से दोस्ती करने का
अब मेरा भी इरादा नही
रूह की तरंगे नही समझा
ज़ुबान क्या खाक समझेगा
जो आह को नही समझा
आंसू क्या खाक समझेगा
जो फुर्सत में ही सुनेगा मेरी
उसे मैंने अब क्यूं ही कहना है
अकेली कोमल नदी हूँ मैं
मुझे चट्टानो में बहना है
कहीं पर चोट खाना है
कहीं पर मोड़ खाना है
समुंदर तुम नही शायद
जहां मुझ को मिल जाना है
जब जहां हवाऐं ले जाएं
उसी दिशा मुझ को बहना है
मेरी हर उम्मीद पर उसने
करना हर रोज बहाना है
गली है गर संकरी तेरी
मुझे क्यों उस मे जाना है
मिलो जो गैर की तरह
तो क्यूं मिलना मिलाना है
शेष फिर
सुनीता
समझ
न आंसू समझता है
न खामोशी समझता है
थक गए मेरे शब्दो की
न बेहोशी समझता है ।
मेरी सपनीली आँखों की
न मदहोशी समझता है
समझता है कि मैं समझती हूं
कि वो कुछ भी नही समझता है
कहाँ तलाश करूँ
कोई मुझको मिल जाये
जो बस मेरा हो पाए
जब रोना चाहूं मैं
तो कंधा मिल जाये
हो कर भी नही है जो
उसका क्या करूँगी मैं
जब आंसू खुद अपने
हाथों से पोछने हो जाएं
रविवार, 23 अप्रैल 2017
राह
पहले इस दुनिया मे रहती थी
अब मैं तुम्हारी दुनिया मे रहती हूँ
वो दुनिया भी बेगानी थी
दुनिया तेरी भी बेगानी है
तेरी सूरत सुहानी है
तेरा जलवा लासानी है
तुझे देखा तो मन झूमा
कितनी दिलकश नादानी है
क्यूं तुम आंखों से डरते हो
ये कहती हर कहानी है
समझती तो मैं सब कुछ हूँ
कब कितनी राह बनानी है
एक बोझा तेरे सर पर है
एक गठड़ी मैंने उठानी है
तेरी अपनी कहानी है
मेरी अपनी कहानी है
न रुकना तेरे बस में है
न राह मैने छुड़ानी है
गिनो तुम पाँव के छाले
न गिनती कम तुम्हारी है
न गिनती कम हमारी है
खामोशी मरहम नही होती
फिर क्यों तुम ने अपनानी है
न बातें ही कोई मरहम हैं
क्यों मैंने बात बढ़ानी है
दो पल बैठो अनजाने हो
खाली ये कहाँ कहानी है
तुम्हे अपनी सुनानी है
तुम्हारी सुन के जानी है
है कोई एक जो जग में ठहरा
क्यों मैने जगह बनानी है
मुझे बस रूह में रख ले
वही तो साथ जानी है
यादों में मुझ को रख लेना
वहीं सब रस्मे निभानी है
न दुनिया मेरे मतलब की
यहां बस रात बितानी है
जाओ तुम भी चलूं मै भी
राह है मुकद्दर से आबंटित
तुम ने भी चल के पानी है
मैने भी चल के जानी है
शनिवार, 1 अप्रैल 2017
मैं चाहती भी नहीं
ये तिल्लिसम कोई तोड़ दे
कि मैं तुम्हारी हूँ
इसका कोई भ्र्म तोड़ दे
नीरस ही है और था
यह जीवन तेरे बिना
कोई पा जाऊं उपाय मैं
जो तुम्हे मुझ से जोड़ दे
अपना ले बस वो मुझे
तमाम दुनिया मुझे छोड़ दे
इश्क़ ज्यादा है किसका
आगे निकलने की होड़ दे
सिर्फ एक बार ही हो जाये
वो बस मेरा यकीनन
फिर चाहे दिल मेरा तोड़ दे
वो एक बार कुछ तो कहे मुझ से
हे राम तू उसकी चुप्पी तोड़ दे
जुर्म भी है किया मैंने ही गुनाह मेरा है
मेरे कारावास मे उसे कैदी छोड़ दे