वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
बुधवार, 7 अक्तूबर 2020
जो हम करते हैं वैसा बहुत से लोग पहले से करते हैं और बहुत से कर सकते हैं-और बहुत से वैसा ही करने वाले भी हैं-फर्क सिर्फ इतना ही होता है कि हम कैसे करते हैं किस नीयत से करते है और किस के लिए करते हैं -हर मुश्किल के बावजूद करते हैं हर मुश्किल घडी में भी करते है कर्म योग और कर्म ही जब हमारा अध्यात्म हो जाता है तो चिंता हमें नहीं उस इश्वर को ही करनी होती है और नियति स्वीकार करना भी हमारा ही कर्तव्य है
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