बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

जो हम करते हैं वैसा बहुत से लोग पहले से करते हैं और बहुत से कर सकते हैं-और बहुत से वैसा  ही करने वाले भी हैं-फर्क सिर्फ इतना ही होता है कि  हम  कैसे करते हैं किस नीयत से करते है और किस के लिए करते हैं -हर मुश्किल के बावजूद करते हैं हर मुश्किल घडी में भी करते है कर्म योग और कर्म ही जब हमारा अध्यात्म हो जाता है तो चिंता हमें नहीं उस इश्वर को ही करनी होती है और नियति स्वीकार करना भी  हमारा ही कर्तव्य है

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