बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

हर स्त्री को हर लड़की को लगता है कि उसका पति हर उस आदमी से भिड़ जाए तो उस को छेड़े जो उसके साथ जबरदस्ती करे उस से भिड़ जाए किसी हीरो की तरह ।पर वो भिड़ा नही उस ने पत्नी को पीटा और गाली दी माँ बहन की ।।रंडी बह..चो... तू ही ऐसी है तूने ही पीछे लगाया होगा ..वह पहला दिन था जब उसके मर्द होने का भरम निकलने का एक हिस्सा निकल गया .

लड़कियों और औरतो लिखती रहो मेरा इनबॉक्स तुम्हारे लिए है
राजनीति का सच यह भी है - भाई लोगो सियासत में छुटभैयों की दुकानदारी राजनेताओं की गलतियो एवं असुरक्षा पर चल निकलती है । जरा सी  भनक लग जाऐ या गलती का कोई महीन सुराग  मिल जाऐ तो सही- वहीं परजीवी की तरह पनपने लगते है।नई दिल्ली में इनकी भरमार है -trap लगाने का थोक में धन्धा करते है- कभी honey trap तो कभी  money trap और खूब माल लूटते है।चुनाव आते ही छत्तो से निकल गलियों में भिनभिनाते है।ईनकी PROFILE  ये है कि या तो ये केन्द्रीय नेताओं के बेटे ,भतीजे,भानजे ,साले इत्यिादी होते हैं या फिर वें जो  कभी एक बार भाग्य के तुक्के से MLA /MPबन जाते है -दुबारा कभी कुछ हाथ नही आया होता। वो भी छुटभैयों से भी छोटी छुटभैयागिरी करते है।इस कवायद में नीचता तो है ही पर हाथ काले धन पर सही जा लगता है।और हां उन्हे पुलिस से, हम से, तुम से, मीडीया से यहां तक की उस नेता से भी पहले खबर होती है  वो कहां फंसेगा ।कौन ,कहां किस नेता के साथ कब क्या  घटने वाला है।यूं ही दिल्ली को दिल्ली नही कहते  मिंया।यहां  अपने- अपने सूबे  में कोइ नेता कितना दहाड़ ले  TRAP REPORT CARD तो उनके पास होते  है और ये वहां मिमिया रहे होते हैं और  उन संग प्रतिशत का बटंवारा करते करते  भाई लोगों की अपनी TERM पूरी ----------- आज यूं ही सियासती दिनो का आखों देखा हाल याद आ गया जैसे जैसे चुनावी बंसत आने लगेगा मुझे  बड़े नेता लोगों के भीतरी आत्माओं के  पतझड़ स्मरण हो आऐंगे ।कह देना मेरी नैसर्गिक मजबूरी है शब्द अपने आप चले आऐंगे और आप तक पहुंच ही जाऐंगें--
!!चुप रहते तो क्या न होता !!कह कह कर पसीना खो दिया

सब लड़कियां जिन्होंने प्रेम किया

सब वे लड़कियां जिन्होंने प्रेम किया 
उन में से प्रेमी संग भागी लड़कियों की  बस कुछ की लाशें बरामद हुई है बाकी सब "मंगलसूत्र पर झूल रही हैं ''
इति की पोस्ट पढ़ का सारांश यही है
यह वीडियो लगभग सब घरों का नजारा होता था और आज भी है -लड़की वही नादान है बाप लड़की के भाग जाने से उतना नही डरता या लज्जित होता जितना समाज का उपहास ,ताने व बहिष्कार उसे डराता है ।समाज के उपहास का  डर  इतना घिनौना है कि पिछले दिनों बेटी के भाग कर शादी करने की खबर से ही माता पिता ने फांसी लगा ली ।आप सोचो ।लड़की और मां बाप कैसे उस समाज के कठोर घिनौने अत्याचार के मासूम मुजरिम है और उस समाज के जिसने अपने जात भीतर कबीले भीतर लड़कियों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी है।न समाज का यह दबाव हो न बाप को पगड़ी उतारनी पड़े कदमो में ...
पोस्ट पढ़ने के इति शर्मा की वाल पर पढ़ लीजिये 
इति शर्मा
जो हम करते हैं वैसा बहुत से लोग पहले से करते हैं और बहुत से कर सकते हैं-और बहुत से वैसा  ही करने वाले भी हैं-फर्क सिर्फ इतना ही होता है कि  हम  कैसे करते हैं किस नीयत से करते है और किस के लिए करते हैं -हर मुश्किल के बावजूद करते हैं हर मुश्किल घडी में भी करते है कर्म योग और कर्म ही जब हमारा अध्यात्म हो जाता है तो चिंता हमें नहीं उस इश्वर को ही करनी होती है और नियति स्वीकार करना भी  हमारा ही कर्तव्य है

सुनो लड़कियों

सुनो तुम सब ....किसी को बनाने में जिंदगी मत झोंक देना ..सफलता अपने फाटक (बैरिकेड्स) साथ रखती है ..उसके सफल होते ही फाटक  तुम्हारी ओर की तरफ  बन्द हो जाएंगे...और तुम्हारा कद फाटक के दूसरी तरफ रोज घटेगा ... 
दूसरे को सिर्फ सहारा देना उसकी काबलियत अनुसार ...झोंकने पर आओ तो सारी ताकत खुद पर झोंकना ...इतनी मेहनत खुद पर कर लेना ...
बीच सड़क... अकेले नही रह जाओगे ...खुद पर काम किया होगा तो ...छोटा या बड़ा कोई मुकाम तो होगा ..थोड़ी घनी कुछ तो छाया होगी विश्राम हेतु ..बस चलते जाना रे ..
Sd
Kiran Ravinder Malik

सुनो लड़कियों

सुनो लड़कियो समाज सेवी बनना सामाजिक कार्यकर्ता बनना भी आसान नही है ।भावाआवेश में आ कर
हिसंक प्रवृति के  लोगों से अकेले नही भिड़ना होता जा के ...पहले आस पास के लोगो को कन्विंस करो अपना उद्देश्य बताओ साथ ले कर चलो और सब के सहयोग से भिड़ो ।न कि अकेले ही समाज सेविका बनने के चक्कर मे संकट में पड़ो ..अकेले हम तभी भिड़ते है जा खड़े होते हैं किसी भी समस्या में जब हमें विश्वास होता है हमारे भीतर यह साहस होता है कि मेरे साथ जनता की ताकत है ।जनता को विश्वास है कि अगर तुम वहां जा ख़ड़ी हुई हो तो कोई जरूर सही बात होगी ..इस विश्वास को बनाने में सालों साल लगते है कम से कम दस पंद्रह साल लगते है सामाजिक कार्यकर्ता की भी स्थापना होते होते ..इतने लंबे अरसे तक लोग आपको observe करते हैं आपके क्रियाकलापों को देखते रहते है। शुरू में लोग साथ भी चलते हैं शंका भी करते हैं धीरे धीरे सब बदलता है ।एक ही रात में तुम समाज नही बदल पाओगी ।सामाजिक परिवर्तन धीरे धीरे आता है ।क्रांति ही एकदम आती और वह भी किसी विचार से ही आती है सही समय पर सही जगह सही विचार और उसका सही एक्शन प्रस्तुत करने से

सुनो लड़कियों

सुनो लड़कियों ।लाखों फॉलोवर्स में फूलो मत बल्कि और चौकन्ना रहो जितना ज्यादा आप सार्वजनिक मंचों पर दिखते हैं उतने ही प्रतिस्पर्धी व ईर्ष्यालु और विरोधी भी पैदा होते हैं ।
और हाँ लाखो फॉलोवर्स और ताली बजाने वालों की  लाइफ एक अंगुली या अंगूठे से अगले पेज तक  स्क्रोल करने तक ही है ।उन के भरोसे सींग मत फंसाना कहीं ।खुद का बल हो अकेले सहन करने का तभी आगे कदम बढ़ाना । झूठे मुक़्क़द्दमे में जेल होगी तो यकीन करो जेल में बस परिवार ही मिलने आएगा ।अपवाद स्वरूप कुछ गिनती के लोग जिक्र करेंगे और एक आध ही मिलेगा जो आएगा सब ताक पर रख के ।
सामाजिक यात्रा दुरूह होती हमेशा ।

चल हट ए काग़ज़ सी जिंदगी

चल हट ऐ कागजी सी ज़िन्दगी 
बस दो कागज़ -
जन्म प्रमाण पत्र मृत्यु प्रमाण पत्र 
और उस अवधि बीच 
अनेक कागज और
 उन्हें हम  कहें जिंदगी 
कक्षा दर कक्षा चढ़ते उतरते कागज 
प्रसंशा के  और प्रताड़न के कागज़ 
प्रेम पत्र के कागज 
कोर्ट कचहरी के कागज 
सम्पति के कागज 
शारीर जांच के और  दवाई के कागज 
घर के हर बिल के कागज 
किस्तो के ऋण के कागज़ 
सब ओर कागज ही कागज 
बिखरे होते हैं सब ओर 
जाने कितने कागज ही कागज 
हर साल  होती है 
दीवाली की सफाई 
और फेंक देती हूँ 
कितने ही कागज 
हाँ बस हर बार 
बस एक बैग में रख लेती हूँ 
उसके सब कागज 
जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र 
और उनके बीच  उसके द्वारा 
हासिल की गयी  उन सब उपलब्धियों के कागज 
जिन्हें हासिल कर लाने के लिए 
कितनी बार लतियाया था तुम्हे 
जितना चिल्लाई थी तुम पर 
बिन कागज जीने नहीं देगा जमाना
बेटा  जीना  छोड़ हासिल करना सिर्फ कागज 
ज़माना न मुँह देखता है न हुनर न ही देखेगा दिल पगले 
हर जगह मांग लेगा तेरे कागज 
तुझे छोड़ देखेगा तो सिर्फ तेरे कागज 
अब हर साल निकल आता है 
बक्सों में रखा एक बैग 
जिसमे भरे है तेरे सब  कागज
 जन्मना बताते हैं तेरा मर जाना बताते है 
और बाकि भरे पड़े  उपलब्धियों के सर्टिफिकेट 
धिक्कारते हुए मुझे मुँह चिढ़ाते हैं 
रोती बिलखती मैं साल दर साल उन्हें घूप दिखा ।
रख देती हूँ फिर उन्हें उसी बैग में
ताकती हूँ  तेरी ज़िन्दगी के कागज 
जानती हूँ अगली पीढ़ी कहेगी 
क्यूँ रखने है ये कीट लगे पीले कागज 
इस बैग को वास्तु दोष बताएंगे 
मेरे सामने ही मेरी एक जिंदगी को हटाएंगे 
और दीवाली की किसी सफाई में 
इस बैग में भरे आंसू भी
 घर से निकाले जायेंगे और दिए जलाएंगे 
सब दीवाली मनाएंगे 

सुनीता धारीवाल