कभी कभी खुद का लिखा भी खुद के बहुत करीब होता है जैसे यह कविता
रास्ते
चल तो दूं मैं उन्ही
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं
तुम जो संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं झोले में भर
यादों की एक डली
ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
मैं थी तुम से मिली
कैसे क्या हो गयी
कैसे मैं खो गयी
था तिल्लिसम नया
थी दिल में हसरत नयी
जानती तो हूँ मगर
मानती मैं नहीं
न ही तू है मेरा
मैं नहीं हूँ तेरी
याद है वो घड़ी
मैं थी यूँ जब खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह पे पड़ी
बस एक बार और
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं
आ भी जाओ प्रिय
अब चलो फिर कहीं
जहाँ से जाते नहीं
अब मुसाफिर कोई
रास्ते तो हैं मगर
वे पहुंचेंगे कहीं नहीं
सुनीतारास्ते
चल तो दूं मैं उन्ही
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं
तुम जो संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं झोले में भर
यादों की एक डली
ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
मैं थी तुम से मिली
कैसे क्या हो गयी
कैसे मैं खो गयी
था तिल्लिसम नया
थी दिल में हसरत नयी
जानती तो हूँ मगर
मानती मैं नहीं
न ही तू है मेरा
मैं नहीं हूँ तेरी
याद है वो घड़ी
मैं थी यूँ जब खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह पे पड़ी
बस एक बार और
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं
आ भी जाओ प्रिय
अब चलो फिर कहीं
जहाँ से जाते नहीं
अब मुसाफिर कोई
रास्ते तो हैं मगर
वे पहुंचेंगे कहीं नहीं
सुनीता
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