कितनी बार फिसले
मुट्ठी से मेरी रेत की तरह
लम्हे जो बहुत अजीज थे
रिश्ते जो बहुत करीब थे
भला कहाँ खरीद पाए सब
हम भी कितने गरीब थे
डूबे नहीं वो कभी मेरे संग
जितने भी मेरे हबीब थे
कितनी ही बार फिसले
मेरी आँख से
अनकहे शब्द मेरे
जो कह दिए जाने के करीब थे
शेष फिर
सुनीता धारीवाल
मुट्ठी से मेरी रेत की तरह
लम्हे जो बहुत अजीज थे
रिश्ते जो बहुत करीब थे
भला कहाँ खरीद पाए सब
हम भी कितने गरीब थे
डूबे नहीं वो कभी मेरे संग
जितने भी मेरे हबीब थे
कितनी ही बार फिसले
मेरी आँख से
अनकहे शब्द मेरे
जो कह दिए जाने के करीब थे
शेष फिर
सुनीता धारीवाल
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