सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

अगर तुम साथ हो

पल भर ठहर जाओ
दिल ये संभल जाये
कैसे तुम्हे रोका करूँ
मेरी तरफ आता हर गम फिसल जाये
आँखों में तुम को भरूँ
बिल बोले बातें तुम से करूँ
अगर तुम साथ हो

बहती रहती  नहर नदियां सी
तेरी दुनिया में ,मेरी दुनिया है
तेरी चाहतो में ,मैं ढल जाती हूँ
तेरी आदतो में
अगर तुम साथ हो

तेरी नजरो में हैं तेरे सपने
तेरे सपनो में है नाराजी
मुझे लगता है बातें दिल की
होती लफ़्ज़ों की धोखेबाजी
तुम साथ हो या न हो क्या फर्क है
बेदर्द सी जिंदगी बेदर्द है
अगर तुम साथ हो

पलके झपकते ही दिन ये निकल जाए
बैठी बैठी भागी फिरू
मेरी तरफ आता हर गम फिसल जाये
आँखों में तुमको भरूँ
बिन बोले बातें तुमसे करूँ
अगर तुम साथ हो ।

तेरी नज़रो में हैं तेरे सपने
तेरे सपनो में है  नाराजी
मुझे लगता है के बाते दिल की
होती लफ्जो की धोखेबाजी
तुम साथ हो या न हो क्या हर्ज  है
बेदर्द थी ज़िन्दगी बेदर्द है
अगर तुम साथ हो

दिल दिल संभल जाये
अगर तुम साथ हो
हर गम फिसल जाये
अगर तुम साथ हो
दिन ये निकल जाये ।
अगर तुम साथ हो
हर गम फिसल जाये

शनिवार, 11 फ़रवरी 2017

रास्ते

कभी कभी खुद का लिखा भी खुद के बहुत करीब होता है जैसे यह कविता

रास्ते

चल तो दूं मैं उन्ही
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं

तुम जो  संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं  झोले में भर
यादों की एक डली

ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
मैं  थी तुम से मिली

कैसे क्या हो गयी
कैसे मैं खो गयी
था तिल्लिसम नया
थी दिल में हसरत नयी

जानती तो हूँ मगर
मानती मैं नहीं
न ही तू है मेरा
मैं नहीं हूँ तेरी

याद है वो घड़ी
मैं थी  यूँ जब  खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह  पे पड़ी

बस एक बार और
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं

आ भी जाओ प्रिय
अब चलो फिर कहीं
जहाँ से जाते नहीं
अब मुसाफिर कोई

रास्ते तो हैं मगर
वे पहुंचेंगे  कहीं नहीं

सुनीतारास्ते

चल तो दूं मैं उन्ही
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं

तुम जो  संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं  झोले में भर
यादों की एक डली

ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
मैं  थी तुम से मिली

कैसे क्या हो गयी
कैसे मैं खो गयी
था तिल्लिसम नया
थी दिल में हसरत नयी

जानती तो हूँ मगर
मानती मैं नहीं
न ही तू है मेरा
मैं नहीं हूँ तेरी

याद है वो घड़ी
मैं थी  यूँ जब  खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह  पे पड़ी

बस एक बार और
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं

आ भी जाओ प्रिय
अब चलो फिर कहीं
जहाँ से जाते नहीं
अब मुसाफिर कोई

रास्ते तो हैं मगर
वे पहुंचेंगे  कहीं नहीं

सुनीता

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

कितनी बार फिसले

 मुट्ठी से मेरी  रेत की तरह

 लम्हे जो बहुत अजीज थे 

रिश्ते जो बहुत करीब थे 

भला कहाँ खरीद पाए  सब 

हम भी कितने गरीब थे 

डूबे नहीं वो कभी मेरे  संग 

जितने  भी मेरे हबीब थे 

कितनी ही बार फिसले 
मेरी आँख से 

 अनकहे शब्द मेरे 

जो कह दिए जाने  के करीब थे 

शेष फिर 
सुनीता धारीवाल