शनिवार, 14 जनवरी 2017

चल तो दूं मैं


रास्ते

चल तो दूं मैं उन्ही
रास्तो पे कहीं
जाते तो है मगर
पहुँचते ही नहीं

तुम जो  संग चलो
तो चलूँ फिर वहीँ
लाएं  झोले में भर
यादों की एक डली

ज़िन्दगी कहते हैं जिसे
वो वही थी मिली
थे बंद सब रास्ते
मैं  थी तुम से मिली

कैसे क्या हो गयी
कैसे मैं खो गयी
था तिल्लिसम नया
थी दिल में हसरत नयी

जानती तो हूँ मगर
मानती मैं नहीं
न ही तू है मेरा
मैं नहीं हूँ तेरी

याद है वो घड़ी
मैं थी  यूँ जब  खड़ी
जैसे छावं कोई
तपती राह  पे पड़ी

बस एक बार और
आओ फिर से चले
रास्तो पे उन्ही
जायेंगे जो मगर
पहुंचेंगे नहीं

आ भी जाओ प्रिय
अब चलो फिर कहीं
जहाँ से जाते नहीं
अब मुसाफिर कोई

रास्ते तो हैं मगर
वे पहुंचेंगे  कहीं नहीं

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