बुधवार, 10 अगस्त 2016

दुःख

दुःख मवाद सा होता है
होता है गर भीतर
तो टीस देता है चीस देता है
हरा रहता है भरा रहता है
यकायक फट पड़ता है
आँखों के रस्ते
दिल चीर कर रस्ते बनाता हुआ
श्वास में भर जाता हैं
रुंध देता है गले को और आवाज को
और निकाल लेता है
ताकत सारे तन की
तब इंसान बैठता नहीं
बस लड़खड़ाता है
हर आहट हड़बड़ाता है
उसका दिमाग गड़बड़ाता है
और वो इंसान नहीं रहता
लाश पर कपडे टंगे
खूँटी सा होता है
वो इंसान नहीं होता
चलती फिरती लाश होता है

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