मुँडेर लापता है
उसी कुएं की
जो बरसो भरा था
पर अब करता है
सायं सायं
जब भी कभी
जाती हूँ रस्सी ले
और ले बाल्टी
ढूंढती हूँ चक्का
नहीं मिलता
और गले लगाती है
भयावहता और सुखी गहराई
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शुक्रवार, 11 मई 2018
मंगलवार, 8 मई 2018
Wtv song
हम हैं wtv team india
सपनो को पंख लगाऐंगीं
सबला ताकत बन जाऐंगी
नारी मन खोल दिखाऐंगी
अपनी आवाज सुनाऐंगी
अनसुनी सदाऐं औरत की
दुनिया को सच दिखलाऐंगी
कोई पीड़ा में हों या क्रन्दन में
सबका कन्धा बन जाऐंगी
आत्मबल से और मेहनत से
ख्वाबो को सच कर पाऐंगी
आपके विश्वास की पूंजी सें
दुनिया भर में छा जाऐंगी
हम हैं wtv team india
बुधवार, 2 मई 2018
सुनो रंगरेज मेरे
सुनो तुम
रंगरेज मेरे
मेरे उलझे पुलझे
बेरंग से धागे
रंग दो न
अपने रंग में
मैं सतरंगी सपनो में
ढूंढना चाहती हूं
खुद को
मटमैले धागों को
कुछ पल के लिए
रंगना चाहती हूं
तुम्हारे खौलते रंग घोल से
चाहती हूं फिर सूखना
तुम्हारे तन की आंच पर
फिर बनना है मुझको
तुम्हारी पगड़ी
इतराना मुझ पर
बनूँ मैं तुम्हारी
मां का आँचल
तुम छुप जाना
मुझ में जब चाहो
तुम्हारा मैं
झूला बनूं
गहरी निंदिया
आए तुम्हे
तेरे बंदनवार की
झालर बनूँ
बाजूं रुनक झुनक
तेरे दर पर
मैं बनूं कोई
छतरी रंगीन
बरखा से तुझको
ओट करूँ
मैं बनूं शामयिना
तेरे उत्सव का
कड़ी धूप में तेरी
छांव बनू
मैं बनू गमछा
तेरे कांधे का
लूँ सोख जल
तेरे तप श्रम का
जब उम्र चुके
और रंग ढले
पायदान बनूँ
तेरे घर का
तेरे चरणों मे
मेरा सूत मिटे
बस अंत समय
हो जाऊं माटी
तेरी देहरी की
तेरे आँगन की
ओ रंगरेज
सुनो तुम
रंग दो न
मेरे उलझे से
मटमैले घागे
रंग दो न
अपने रंग में
बदरंग सी मैं
उलझी पुलझी हूँ
लकीरो में आड़ी टेड़ी
तुम सुलझा दो
और रंग दो न
@SD